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Roopkund lake – उत्तराखंड की रहस्यमयी कंकालों की झील

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Roopkund lake – उत्तराखंड की हिमालयी ऊँचाई पर स्थित रूपकुंड झील को ‘कंकालों की झील’ कहा जाता है। जानिए इस रहस्यमयी झील की डरावनी कहानियाँ, वैज्ञानिक खोजें, DNA अध्ययन, ट्रेकिंग जानकारी और ऐतिहासिक रहस्य।

कल्पना कीजिए कि आप एक शांत झील के पास पहाड़ों की गोद में छुट्टियाँ मना रहे हैं, और तभी आपकी नजर पानी में पड़े सैकड़ों कंकालों पर पड़ती है। क्या आप डरेंगे या हैरान रह जाएंगे?
कुछ ऐसा ही नज़ारा साल 1942 में सामने आया था, जब ब्रिटिश काल के एक वन अधिकारी ने उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में स्थित Roopkund lake के किनारे असंख्य मानव कंकालों को देखा। उस वक्त झील का पानी जैसे किसी प्राचीन रहस्य को उजागर कर रहा था – क्योंकि वहां की तलहटी इंसानी हड्डियों से भर चुकी थी।

Roopkund lake : एक झील जो डराती है…

जब भी हम हिमालय की बात करते हैं, हमारे सामने बर्फ से ढकी चोटियाँ, शांत झीलें और आध्यात्मिकता की एक गूंजती छवि बनती है। लेकिन क्या आपने कभी ऐसी झील के बारे में सुना है, जहाँ सैकड़ों इंसानी कंकाल पानी के नीचे साफ-साफ दिखाई देते हैं?

उत्तराखंड की Roopkund lake, जिसे “Skeleton Lake” भी कहा जाता है, सिर्फ एक ट्रेकिंग डेस्टिनेशन नहीं है – यह हजारों वर्षों से दबी हुई एक डरावनी पहेली भी है।

Roopkund lake

Roopkund lake कहाँ है ?

विशेषता विवरण

स्थान चमोली ज़िला, उत्तराखंड, भारत
ऊँचाई लगभग 5,020 मीटर (16,499 फीट)
व्यास लगभग 40 मीटर (130 फीट)
निकटतम गाँव लोहारजुंग, वाण, बेदनी बुग्याल
पहुँच मार्ग रूपकुंड ट्रेक (Lohajung → Bedni → Roopkund)

कंकालों की रहस्यमयी कहानी

Roopkund lake

पहली खोज

1942 में ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड को झील में अस्थियाँ दिखाई दीं। शुरुआत में सोचा गया कि ये शायद जापानी सैनिकों के अवशेष हैं जो भारत में घुसपैठ करने आए थे। लेकिन बाद में रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला कि ये कंकाल 9वीं से लेकर 19वीं शताब्दी तक के हैं।

इसके बाद इन कंकालों की जांच समय-समय पर होती रही, लेकिन हर नए अध्ययन के साथ वैज्ञानिकों की राय में भिन्नता देखने को मिली। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन लोगों की मृत्यु हिमस्खलन या ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई, जबकि कुछ अन्य शोधकर्ताओं का कहना है कि शायद इनकी मौत किसी घातक महामारी के फैलने से हुई थी।
सच्चाई यह है कि रूपकुंड झील में इतने सारे मानव कंकाल क्यों और कैसे पहुंचे, इस सवाल पर आज भी वैज्ञानिकों की एकमत राय नहीं बन सकी है।

DNA टेस्ट और वैज्ञानिक रहस्य

2019 में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण DNA अध्ययन (Nature Communications Journal) में 38 कंकालों का विश्लेषण किया गया, जिससे 3 प्रमुख समूहों का पता चला:

1. दक्षिण एशियाई मूल (लगभग 800 ईस्वी):

स्थानीय लोग या तीर्थयात्री।

Roopkund lake

2. पूर्व भूमध्यसागरीय (ग्रीस आदि से):

लगभग 1800 के आसपास के लोग।

आश्चर्य: वे इस दूरस्थ क्षेत्र में क्यों और कैसे पहुँचे?

3. दक्षिण-पूर्व एशियाई (1 व्यक्ति):

संभवतः बर्मी/थाई क्षेत्र से।

मौत का कारण?

सबसे प्रचलित सिद्धांत यह है कि तेज ओलावृष्टि (hailstorm) के कारण एक बड़े समूह की अचानक मृत्यु हुई।

कई खोपड़ियों में सिर पर गोल, गहरे फ्रैक्चर मिले जो बड़े बर्फ के गोलों से हुई चोट को दर्शाते हैं।

कोई शरण नहीं मिल पाने के कारण सभी बर्फबारी में मारे गए।

Roopkund lake

लोककथाएँ: देवी नंदा की नाराज़गी ?

स्थानीय लोगों के अनुसार, एक बार राजा जसधवल (कान्यकुब्ज, उत्तर प्रदेश) अपनी रानी और सेवकों के साथ नंदा देवी यात्रा पर निकले थे।
रास्ते में उन्होंने नियमों का उल्लंघन किया – जैसे नृत्य-गान, माँसाहार। इससे नंदा देवी क्रोधित हुईं और उन्हें विनाशकारी बर्फीले तूफ़ान में मारा गया।

Roopkund lake ट्रेक – रोमांच और भय का संगम

 ट्रेक रूट:

> Lohajung → Didna → Ali Bugyal → Bedni Bugyal → Patar Nachauni → Bhagwabasa → Roopkund Lake

बेसिक जानकारी:

श्रेणी विवरण

समय 7 से 9 दिन
समयसीमा – मई-जून, सितम्बर-अक्टूबर
ऊँचाई वृद्धि -2,300 मीटर से 5,020 मीटर तक

दर्शनीय स्थल:

बेदनी बुग्याल (Meadow): हरियाली से भरपूर विशाल मैदान।

त्रिशूल पर्वत का दृश्य: स्वर्ग समान।

बर्फीली चढ़ाई और अंतिम चरण: बेहद थका देने वाला लेकिन दिलकश।

वैज्ञानिक अन्वेषण: आधुनिक दृष्टिकोण

रेडियोकार्बन डेटिंग से कंकालों की उम्र तय की गई।

माइटोकॉन्ड्रियल DNA विश्लेषण से वंश और समूह पहचाने गए।

कुछ कंकालों के भोजन अवशेष और आभूषण अब भी बरकरार हैं।

वर्ष 2013 में एशियन नेटिव और ग्रीक मूल के लोगों की उपस्थिति चौंकाने वाली रही।

कैसे पहुँचें ?

माध्यम विवरण

सड़क ऋषिकेश → कर्णप्रयाग → वाण गाँव (Base)
निकटतम स्टेशन काठगोदाम
निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर एयरपोर्ट (उत्तarakhand)

ट्रेकिंग के लिए स्थानीय गाइड लेना अनिवार्य है।

आज की स्थिति और खतरे

क्लाइमेट चेंज से बर्फ जल्दी पिघल रही है।

पर्यटकों द्वारा कंकालों की चोरी चिंता का विषय बन गई है।

सरकार ने इस स्थान को “संरक्षित पुरातात्विक धरोहर” घोषित किया है।

क्या ये झील भूतिया है?

Roopkund lake : भले ही वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हों, लेकिन स्थानीय लोग अब भी मानते हैं कि यह जगह अशुभ है।
रात में यहाँ रुकना मना है। कई ट्रेकरों ने अजीब आवाजें सुनने, असहज ऊर्जा और GPS/कंपास फेल होने की घटनाओं का ज़िक्र किया है।

ट्रेकिंग के सुझाव

ऊँचाई की बीमारी (AMS) से बचने के लिए धीरे-धीरे चढ़ें।

गरम कपड़े, ट्रेकिंग शूज़ और दवाइयाँ जरूर रखें।

सोलर पावरबैंक, हेडलैम्प, ट्रेक पोल, रेन कवर जरूरी हैं।

डर और सौंदर्य का संगम

Roopkund lake न सिर्फ एक ऐतिहासिक रहस्य है, बल्कि यह हमें प्रकृति, श्रद्धा और मृत्यु के रहस्यों के बीच संतुलन की कहानी भी सुनाती है।
यहाँ की हवा में रहस्य है, पानी में इतिहास है, और हर चट्टान में एक अनसुनी चीख।

पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

1.Roopkund lake में कितने कंकाल हैं?

लगभग 500 से अधिक कंकाल अब तक दर्ज किए जा चुके हैं।

2. क्या कोई भूतिया घटना रिकॉर्ड हुई है?

औपचारिक रूप से नहीं, लेकिन कई ट्रेकर्स ने असहज अनुभव साझा किए हैं।

3. क्या यहाँ ट्रेक करना सुरक्षित है?

हाँ, लेकिन फिटनेस, मौसम और गाइड की सलाह पर निर्भर करता है।

मैंने इस लेख में अपने व्यक्तिगत रिसर्च, वैज्ञानिक रिपोर्ट्स और ट्रेकिंग अनुभवों को जोड़ा है ताकि आपको एक सम्पूर्ण झलक मिले उस Roopkund lake की जो हर साल हड्डियों के साथ अपनी कहानी दोहराती है।

 क्या आप इस रहस्य से जुड़ी कोई कहानी जानते हैं?

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Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

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