केदारनाथ धाम यात्रा – प्राचीन काल में इस क्षेत्र को “केदार खंड” के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धामों और पंच केदारों में से एक है तथा सम्पूर्ण भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष स्थान रखता है।
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केदारनाथ मंदिर का इतिहास – केदारनाथ धाम यात्रा
केदारनाथ धाम यात्रा – – केदारनाथ मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख और पवित्र तीर्थस्थलों में गिना जाता है। यह समुद्र तल से 3,584 मीटर की ऊँचाई पर, मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को “केदार खंड” के नाम से जाना जाता था। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धामों और पंच केदारों में से एक है तथा सम्पूर्ण भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष स्थान रखता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग या ब्रह्मांडीय प्रकाश स्वरूप में अवतार लिया था। ऐसे कुल 12 ज्योतिर्लिंग माने जाते हैं, जिनमें से सबसे ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ है। यह अद्भुत और प्राचीन मंदिर लगभग एक हज़ार वर्ष पूर्व जगद्गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था। उत्तराखंड राज्य की रुद्र हिमालय श्रृंखला में स्थित यह मंदिर 3,581 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। यहाँ तक पहुँचने के लिए निकटतम स्थान गौरीकुंड से लगभग 16 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करनी पड़ती है।
केदारनाथ मंदिर एक भव्य आयताकार मंच पर विशाल पत्थर की शिलाओं से निर्मित है। पवित्र गर्भगृह तक पहुँचने के लिए चौड़ी धूसर रंग की सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर पाली भाषा में लिखे गए शिलालेख भी देखने को मिलते हैं। मंदिर के गर्भगृह की आंतरिक दीवारों पर देवी-देवताओं की विविध मूर्तियाँ और पौराणिक कथाओं से जुड़े सुंदर चित्र अंकित हैं।
केदारनाथ मंदिर की उत्पत्ति का उल्लेख महान महाकाव्य महाभारत में मिलता है। किंवदंती है कि महाभारत युद्ध में कौरवों को पराजित करने के बाद, पांडव अपने द्वारा किए गए नरसंहार के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद लेने पहुंचे। लेकिन भगवान शिव उनसे बचते रहे और छिपते-छिपाते केदारनाथ पहुँचे। पांडव जब उनका पीछा करते-करते यहाँ तक पहुँचे, तब भगवान शिव धरती में समा गए।
कहा जाता है कि जिस स्थान पर आज पवित्र गर्भगृह स्थित है, वहीं भगवान शिव ने धरा में प्रवेश किया और उनका कूबड़ सतह पर रह गया। यही कूबड़ आज मंदिर के भीतर शंक्वाकार चट्टान के रूप में विद्यमान है और भगवान शिव के सदाशिव स्वरूप के रूप में पूजनीय है। इस दिव्य प्रकट रूप की पंडितगण और श्रद्धालु नित्य पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर के अंदर भगवान शिव की एक और पवित्र प्रतिमा भी स्थापित है।
मंदिर के द्वार पर नंदी की विशाल प्रतिमा प्रहरी के रूप में विराजमान है। इस प्राचीन मंदिर का समय-समय पर निरंतर जीर्णोद्धार होता रहा है।केदारनाथ में सर्दियों के दौरान अत्यधिक हिमपात होता है, जो कई मीटर तक जमा रहता है। नवंबर से लेकर अप्रैल तक मंदिर पूरी तरह बर्फ की चादर में ढका रहता है। इसी कारण हर वर्ष सर्दियों के आगमन पर, सामान्यतः नवंबर के पहले सप्ताह में, एक पूर्व निर्धारित शुभ तिथि पर भगवान शिव की प्रतीकात्मक मूर्ति को केदारनाथ से उखीमठ ले जाया जाता है। वहाँ भगवान शिव के रूप में उनकी पूजा-अर्चना होती है।
केदारनाथ धाम यात्रा – उखीमठ में नवंबर से लेकर अगले वर्ष मई तक नियमित रूप से भगवान शिव की आराधना की जाती है। मई के पहले सप्ताह में, बीकेटीसी द्वारा घोषित शुभ तिथि पर, इस प्रतीकात्मक मूर्ति को वापस केदारनाथ लाया जाता है और मूल स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसी अवसर पर मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। उस समय देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु इस पवित्र धाम की तीर्थयात्रा के लिए पहुँचते हैं। परंपरा के अनुसार, मंदिर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर) में बंद होता है और वैशाख मास (अप्रैल-मई) में पुनः खोला जाता है।
शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता पौराणिक इतिहास
केदारनाथ धाम यात्रा – इस पवित्र धाम से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में मिलता है।
📖 कथा के अनुसार, प्राचीन काल में बदरीवन (आज का बद्रीनाथ क्षेत्र) में भगवान विष्णु के नर-नारायण अवतार तपस्या कर रहे थे। वे प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा किया करते थे। उनकी गहन भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी स्वयं वहां प्रकट हुए।
🌼 शिव जी ने नर-नारायण से वर मांगने को कहा। तब नर-नारायण ने प्रार्थना की कि प्रभु आप यहीं सदा निवास करें, ताकि आपके दर्शन सभी भक्तों को सरलता से प्राप्त हो सकें। इस पर शिव जी सहमत हो गए और कहा कि वे यहीं विराजेंगे और यह स्थान ‘केदार क्षेत्र’ के नाम से प्रसिद्ध होगा।
⛪ बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इस पवित्र धाम का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार कराया। तभी से यह धाम भक्तों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है।
👉 इसीलिए केदारनाथ धाम को सिर्फ एक मंदिर ही नहीं बल्कि भक्ति, इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्वितीय संगम माना जाता है।
लिंगम की कथा :
केदारनाथ धाम यात्रा – केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव के प्रतीक लिंगम के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वी, वायु, जल और अग्नि तत्वों से प्राकृतिक रूप से हुआ है।
इन किंवदंतियों और अन्य ने केदारनाथ को हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल और भगवान शिव के अनुयायियों के लिए श्रद्धा का स्थान बना दिया है।
केदारनाथ में भरने वाले अंकुट मेले की महिमा ✨
केदारनाथ धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक परंपराओं के कारण भी विशेष महत्व रखता है। इन्हीं परंपराओं में से एक है अंकुट मेला, जिसे स्थानीय लोग और भक्तगण बेहद श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं।
🕉️ अंकुट मेले की विशेषता
केदारनाथ धाम यात्रा – अंकुट मेले को भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने वाला पर्व माना जाता है।
“अन्नकूट” का शाब्दिक अर्थ है – अन्न का पर्वत। इस दिन विभिन्न प्रकार के अनाज और पकवान भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
यह मेला फसल कटाई और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। श्रद्धालु नई फसल का अन्न भगवान भोलेनाथ को अर्पित करते हैं।
स्थानीय परंपरा के अनुसार, इस दिन भोलेनाथ को नये अनाज और विशेष व्यंजन अर्पण करने से पूरे वर्ष भर घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
🙏 धार्मिक मान्यता
कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से अंकुट मेले के दिन भगवान शिव को अन्न अर्पित करता है, उसके जीवन में कभी अन्न और धन की कमी नहीं होती।
यह पर्व लोक आस्था, कृषि संस्कृति और भक्ति का अनोखा संगम है।
🎉 मेले का आयोजन
केदारनाथ धाम में यह मेला भव्य रूप से आयोजित होता है।
स्थानीय लोग, साधु-संत और देशभर से आए श्रद्धालु इसमें शामिल होकर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं।
भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के बीच वातावरण पूरी तरह शिवमय हो जाता है।
केदारनाथ में मौसम और यात्रा का सही समय
केदारनाथ धाम यात्रा – शीतकाल (अक्टूबर से अप्रैल)
सर्दियों के दौरान यहाँ का मौसम बेहद कठोर हो जाता है। दिन में भी कड़ाके की ठंड रहती है और न्यूनतम तापमान अक्सर शून्य से नीचे चला जाता है। लगातार होने वाली भारी बर्फबारी के कारण इन महीनों में केदारनाथ की यात्रा बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं मानी जाती।
ग्रीष्मकाल (मई से जून)
गर्मी का मौसम यानी मई से जून का समय यहाँ घूमने के लिए सबसे आदर्श माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना और हल्की ठंडक लिए रहता है। यही वह समय है जब केदारनाथ की पवित्र तीर्थयात्रा और आस-पास के सभी दर्शनीय स्थल देखने के लिए सबसे अच्छा अवसर होता है।
मानसून (जुलाई से मध्य सितंबर)
मानसून के दिनों में यहाँ लगातार वर्षा होती है और तापमान भी काफी नीचे चला जाता है। इन महीनों में भूस्खलन की संभावना अधिक रहती है, जिससे यात्रा करना कठिन और जोखिमभरा हो सकता है।
मंदिर के कपाट खुलने और बंद होने का समय
केदारनाथ धाम हर साल मई से अक्टूबर/नवंबर तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। हालाँकि, मानसून के दौरान भूस्खलन और खराब मौसम के कारण मंदिर यात्रियों के लिए बंद कर दिया जाता है।
👉 कुल मिलाकर, केदारनाथ में गर्मियाँ सुहावनी और ठंडी रहती हैं, जबकि सर्दियाँ अत्यधिक ठंडी और बर्फबारी से भरपूर होती हैं।
केदारनाथ कैसे पहुँचें – हवाई, रेल और सड़क मार्ग – केदारनाथ धाम यात्रा
केदारनाथ कैसे और कब पहुँचें
✈️ हवाई मार्ग
केदारनाथ धाम का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है, जो केदारनाथ से लगभग 235 किलोमीटर दूर स्थित है। यह हवाई अड्डा दिल्ली से दैनिक उड़ानों द्वारा जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से गौरीकुंड तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग उपलब्ध है और टैक्सियाँ आसानी से मिल जाती हैं।
🚆 रेल मार्ग
केदारनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो गौरीकुंड से लगभग 243 किलोमीटर पहले NH-58 पर स्थित है। ऋषिकेश भारत के विभिन्न प्रमुख शहरों से रेल नेटवर्क द्वारा अच्छी तरह जुड़ा है और यहाँ से अक्सर ट्रेनें उपलब्ध रहती हैं। ऋषिकेश से गौरीकुंड तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। इस मार्ग पर श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि स्थानों से होकर बसें और टैक्सियाँ चलती हैं।
🛣️ सड़क मार्ग – केदारनाथ धाम यात्रा
गौरीकुंड उत्तराखंड राज्य के कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आईएसबीटी कश्मीरी गेट, नई दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर के लिए नियमित बसें उपलब्ध हैं। इसके अलावा देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी जैसे शहरों से भी गौरीकुंड के लिए बस और टैक्सी सेवाएँ आसानी से मिल जाती हैं। गौरीकुंड, राष्ट्रीय राजमार्ग 58 (NH-58) द्वारा गाजियाबाद से सीधा जुड़ा हुआ है।
👉 गौरीकुंड तक पहुँचने के बाद तीर्थयात्रियों को 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर के ही पवित्र केदारनाथ मंदिर तक पहुँचना होता है।
केदारनाथ मंदिर में विशेष पूजाएँ और उनके शुल्क
केदारनाथ धाम यात्रा – केदारनाथ धाम में भक्त विभिन्न प्रकार की पूजाओं और अनुष्ठानों में भाग लेकर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ सुबह और शाम, दोनों समय अलग-अलग विशेष पूजाएँ आयोजित होती हैं। नीचे पूजा का नाम, समय और शुल्क (INR) की सूची दी गई है:
क्रमांक पूजा का नाम समय शुल्क (INR)
- महाभिषेक पूजा सुबह ₹ 8,500/-
- रुद्राभिषेक पूजा सुबह ₹ 6,500/-
- लघुरुद्राभिषेक पूजा सुबह ₹ 5,500/-
- षोडशोपचार पूजा सुबह ₹ 5,000/-
- अष्टोपचार पूजा सुबह ₹ 850/-
- पंचोपचार पूजा सुबह ₹ 850/-
- दिन की संपूर्ण पूजा सुबह ₹ 26,000/-
- शिव अष्टोत्तरी पाठ शाम ₹ 900/-
- शिव सहस्त्रनाम पाठ शाम ₹ 1,800/-
- शिव नामावली शाम ₹ 1,800/-
- शिव महिमांस्त्रोतम पाठ शाम ₹ 1,800/-
- शिव तांडव स्त्रोतम पाठ शाम ₹ 1,700/-
- शिव पराक्षमास्त्रोतम पाठ शाम ₹ 1,800/-
- संपूर्ण संध्या आरती शाम ₹ 2,500/-
👉 इन पूजाओं में भाग लेने के लिए श्रद्धालु मंदिर प्रशासन (BKTC) से अग्रिम बुकिंग करवा सकते हैं।
केदारनाथ धाम में दान और योगदान के अवसर
केदारनाथ धाम यात्रा – भक्तजन अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार केदारनाथ मंदिर में दान देकर धार्मिक सेवाओं और मंदिर के संरक्षण में योगदान कर सकते हैं। दान की राशि निम्नलिखित कार्यों में उपयोग की जाती है:
मुख्य मंदिरों का जीर्णोद्धार – प्राचीन केदारनाथ मंदिर एवं अन्य मुख्य धामों की मरम्मत और संरक्षण कार्य।
संलग्न मंदिरों का जीर्णोद्धार – आसपास स्थित छोटे-छोटे देवालयों और तीर्थ स्थलों का नवीनीकरण।
चंदन – भगवान की दैनिक पूजा-अर्चना और विशेष अनुष्ठानों के लिए चंदन की व्यवस्था।
केसर – विशेष पूजन और भोग-अर्पण हेतु उच्च गुणवत्ता वाले केसर की उपलब्धता।
प्रभु के परमेश्वर – भगवान की विशेष सेवा, अलंकरण और धार्मिक आयोजन।
धर्मशालाओं का निर्माण – तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाओं और विश्राम गृहों का निर्माण।
अन्य योगदान – मंदिर और तीर्थ क्षेत्र की अन्य आवश्यकताओं एवं सेवाओं के लिए।
👉 भक्त चाहे तो अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी विशेष मद में दान कर सकते हैं, या फिर सामान्य दान भी कर सकते हैं जो मंदिर के विभिन्न कार्यों में लगाया जाता है।
केदारनाथ मंदिर के पास एचडीएफसी एटीएम सुविधा
केदारनाथ धाम यात्रा – केदारनाथ धाम एक ऊँचाई पर स्थित तीर्थ स्थल है, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। तीर्थयात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर के निकट एचडीएफसी एटीएम की व्यवस्था की गई है।
👉 इस एटीएम से यात्रियों को नकदी निकालने और अपनी यात्रा के दौरान जरूरी खर्च पूरे करने में मदद मिलती है। हालांकि, तीर्थ क्षेत्र में भीड़ और नेटवर्क समस्याओं के कारण कभी-कभी एटीएम में नकदी की कमी हो सकती है। इसलिए श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि यात्रा शुरू करने से पहले पर्याप्त नकदी अपने साथ रखें।
केदारनाथ धाम और आसपास आवास की सुविधा
केदारनाथ धाम यात्रा – केदारनाथ जैसे ऊँचाई पर बसे पवित्र धाम में ठहरने के लिए सीमित विकल्प उपलब्ध हैं। यहाँ यात्रियों के लिए विभिन्न संगठनों की धर्मशालाएँ बहुत ही नाममात्र शुल्क पर उपलब्ध होती हैं। इसके अलावा, श्रद्धालु आसपास के कस्बों और गाँवों में भी ठहरकर अपनी यात्रा को सुविधाजनक बना सकते हैं।
चूँकि श्री केदारनाथ धाम दुर्गम और ऊँचाई पर स्थित है, इसलिए तीर्थयात्रियों को अक्सर निकटवर्ती स्थानों पर रुकने की सलाह दी जाती है। वहाँ से वे हेलीकॉप्टर, टट्टू या पैदल यात्रा के माध्यम से एक ही दिन में केदारनाथ दर्शन पूरा कर सकते हैं।
आसपास उपलब्ध प्रमुख आवास विकल्प:
- सीतापुर (सोनप्रयाग के पास) – केदारनाथ से लगभग 20 किमी
यहाँ कई निजी होटल और लॉज उपलब्ध हैं।
तीर्थयात्रियों के लिए यह सबसे लोकप्रिय ठहरने का स्थान है।
- सोनप्रयाग और गुप्तकाशी में बीकेटीसी गेस्ट हाउस
बद्री-केदार मंदिर समिति (BKTC) द्वारा संचालित गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
सुविधाजनक और सुरक्षित आवास के लिए तीर्थयात्री इन गेस्ट हाउस का चयन कर सकते हैं।
👉 तीर्थयात्रा के सीज़न (मई से अक्टूबर) में यहाँ अत्यधिक भीड़ रहती है, इसलिए यात्रियों को अग्रिम बुकिंग कराने की सलाह दी जाती है
स्कंद पुराण में वर्णित केदार क्षेत्र का महत्व
केदारनाथ धाम यात्रा – स्कंद पुराण के अनुसार, केदार क्षेत्र की पवित्रता और प्राचीनता के बारे में स्वयं भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताया था। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है जितने स्वयं भगवान शंकर। यहीं पर भगवान शंकर ने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा का दिव्य रूप धारण किया और सृष्टि की रचना का प्रारंभ किया। तभी से यह क्षेत्र भगवान शिव का प्रिय धाम बन गया और इसे धरती पर स्वर्ग के समान माना जाने लगा।
ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ का विशेष स्थान
केदारनाथ धाम यात्रा – भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के उत्तरी भाग में, हिमालय की बर्फीली पर्वतमालाओं के बीच स्थित श्री केदारनाथ को एकादश ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है। हिमालय की गोद में बसे होने के कारण यह सभी ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च माना जाता है।
पांडवों द्वारा निर्माण और स्थापत्य कला
केदारनाथ धाम यात्रा – मान्यता है कि महाभारत युद्ध के उपरांत पांडवों ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था। लगभग 80 फीट ऊँचा यह भव्य मंदिर स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें प्रयुक्त पत्थर स्थानीय हैं, जिन्हें बारीकी से तराशकर मंदिर की चतुर्भुजाकार संरचना बनाई गई है।
गर्भगृह – यहाँ भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक विशाल शिला के रूप में विद्यमान है।
गर्भगृह के बाहर – माँ पार्वती की पाषाण प्रतिमा स्थापित है।
सभामंडप – इसमें पंच पांडव, श्रीकृष्ण और माता कुंती की मूर्तियाँ हैं।
मुख्य द्वार – यहाँ गणेश जी और श्री नंदी की प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
परिक्रमा पथ – इसमें अमृत कुंड स्थित है। इसके पूर्वी भाग में भैरवनाथ जी की पाषाण प्रतिमा है।
👉 इस प्रकार, केदारनाथ न केवल एक धार्मिक धाम है बल्कि इसकी स्थापत्य कला, पौराणिक मान्यताएँ और अद्वितीय ज्योतिर्लिंग स्वरूप इसे सभी ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं।
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