Jharkhand Occult Rituals – अंधविश्वास या मां की ममता? झारखंड की वो घटना जिसने हर दिल को हिला दिया कुछ ऐसा ही हुआ झारखंड के चतरा जिले के पैनीकला गांव में, जहां एक मां ने अपने 21 साल के बेटे की मौत को मानने से इनकार कर दिया।
📍स्थान: पैनीकला गांव, हंटरगंज, जिला चतरा झारखंड
🕯️मुख्य पात्र: एक मां – अनिता देवी, एक मृत बेटा – विक्रम कुमार पासवान, और उम्मीद – जो 7 घंटे तक सांस लेती रही।
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“वो जिंदा लौट आएगा…” – एक मां की उम्मीद की अंतिम सांसें
Jharkhand Occult Rituals – मां को सबसे पहले अपने बच्चे की धड़कनों का एहसास होता है, फिर चाहे वो गर्भ में हो या इस दुनिया में। लेकिन जब वही बच्चा अचानक इस दुनिया को अलविदा कह दे, तो मां का दिल मानने को तैयार नहीं होता।
कुछ ऐसा ही हुआ झारखंड के चतरा जिले के पैनीकला गांव में, जहां एक मां ने अपने 21 साल के बेटे की मौत को मानने से इनकार कर दिया।
वो मानती रही…
वो प्रार्थना करती रही…
वो रोने भी नहीं दी किसी को…
क्योंकि उसे भरोसा था कि उसका बेटा उठेगा… जिंदा होगा… वापस आएगा।
गुजरात में बेटे की मौत, गांव में जागी उम्मीद – Jharkhand Occult Rituals
प्रदीप पासवान का बेटा विक्रम कुमार पासवान काम की तलाश में 17 जुलाई को गुजरात गया था। लेकिन सोमवार को अचानक तबीयत बिगड़ने से उसकी मौत हो गई। मंगलवार को शव को सड़क मार्ग से गांव लाया गया।
बुधवार सुबह 7 बजे जब बेटा शव में बदलकर घर पहुंचा – तब से मां अनिता देवी, चाचा नंदु पासवान, फुआ चिंता देवी और गांव की अन्य महिलाएं प्रभु यीशु से प्रार्थना करने लगीं।
“हो सकता है चमत्कार हो जाए…”
“शायद प्रभु उसे वापस भेज दें…”
“जब लाजरस जिंदा हो सकते हैं, तो मेरा विक्रम क्यों नहीं?”
सात घंटे की सांसों से भरी प्रार्थना
Jharkhand Occult Rituals – घर में शव रखा गया। कोई नहीं रोया। न कोई चीत्कार, न कोई रुदन।
सिर्फ – बाइबल की आयतें।
सिर्फ – नम आंखों से होती प्रार्थनाएं।
सिर्फ – मां की उम्मीद।
पूरे 7 घंटे तक ये सिलसिला चलता रहा। गांव के लोग चुपचाप देख रहे थे। कुछ मां की ममता समझ रहे थे, कुछ अंधविश्वास कहकर खड़े थे।
पुलिस आई, सच्चाई सामने आई
Jharkhand Occult Rituals – जब ये बात गांव से बाहर फैली, तो सूचना वशिष्ठनगर थाना प्रभारी अमित कुमार सिंह तक पहुंची।
खबर थी – “घर में शव रखा है, जिंदा करने के लिए झाड़-फूंक हो रही है।”
पुलिस मौके पर पहुंची। लेकिन इससे पहले कि कोई दखल होता, परिवार अंतिम संस्कार के लिए निकल पड़ा।
इस पूरे मामले में न कोई जोर-जबरदस्ती, न कोई हिंसा। सिर्फ – टूटती उम्मीद, और चुपचाप विदा होता एक बेटा।
“मैंने आखिरी कोशिश की…” – मां की आंखों में झांकते शब्द
जब मां अनिता देवी से पूछा गया – “आपने ऐसा क्यों किया?”
उनकी आंखें नम थीं, लेकिन जवाब साफ़…
“मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरा बेटा मर गया है। बाइबल के सहारे मैंने प्रार्थना की, क्योंकि मुझे लगा शायद प्रभु मेरी सुन लें। लेकिन नहीं हुआ…”
अनिता देवी की ये बातें किसी धार्मिक बहस का हिस्सा नहीं थीं। वो सिर्फ एक मां थी – जो आखिरी सांस तक उम्मीद की लड़ाई लड़ रही थी।
अंधविश्वास या आस्था? समाज के लिए एक सवाल
इस घटना को देखकर कई लोग अंधविश्वास कहेंगे।
कई लोग कहेंगे – “ये तो शिक्षा की कमी है”,
कुछ कहेंगे – “खुद को ईश्वर मानने की भूल…”
लेकिन अगर हम दिल से सोचें –
क्या यह सिर्फ अंधविश्वास था?
या एक मां की ममता की अंतिम चिंगारी?
जब विज्ञान भी जवाब नहीं दे पाता, तब इंसान सिर्फ उम्मीद को पकड़ता है। और यही उम्मीद – कई बार प्रार्थना बन जाती है।
आखिरी सलाम विक्रम को… और उस मां को जो कभी हार नहीं मानी
विक्रम का अंतिम संस्कार आखिरकार हिंदू रीति-रिवाज से किया गया।
लेकिन उस दिन केवल एक बेटा नहीं जला…
जली उस मां की आखिरी उम्मीद,
जली वो प्रार्थनाओं की लौ, जो 7 घंटे तक बुझने को तैयार नहीं थी।
आपका क्या कहना है?
Jharkhand Occult Ritualsक्या आप इसे अंधविश्वास मानते हैं?
या एक मां की अटूट ममता?
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