Beti ka janam – भारत में बेटी के जन्म पर दुख और बेटे की चाह अब भी हावी है। जानिए एक वायरल वीडियो की कहानी, जो हमारे समाज की सच्चाई उजागर करती है — और क्यों जरूरी है इस सोच को बदलना।
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समाज में बेटा-बेटी की सोच
इत्ती सी मिट्टी चिपकाना ही भूल गया भगवान?” — तीसरे बच्चे की तैयारी सिर्फ एक बेटे के लिए!
तीसरा बच्चा लड़के के लिए
एक वीडियो से सामने आई समाज की कड़वी हकीकत
Beti ka janam – लड़का और लड़की के समान अधिकार की बातें हम भले ही हर मंच पर करें, लेकिन आज भी भारत के कई इलाकों में जमीनी हकीकत बहुत अलग है। जब भी किसी घर में बेटी जन्म लेती है, तो वहां खुशियों का माहौल बनने की बजाय, अफसोस और निराशा का साया छा जाता है। ऐसा ही एक चौंकाने वाला वाकया हाल ही में सामने आया, जिसने हमारे समाज की सोच पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।
डॉ. शैफाली द्वारा इंस्टाग्राम पर शेयर किए गए एक वायरल वीडियो में यह दृश्य साफ नजर आता है। वीडियो में एक बुजुर्ग महिला एक नन्हीं बच्ची को गुड़िया देती है और कहती है, “ये तेरी छोटी बहन है।” ऐसा लग रहा था कि सब कुछ सामान्य चल रहा है, लेकिन तभी महिला कुछ ऐसा बोल देती है जो दिल दहला देता है। वह कहती है – “भगवान इत्ती सी मिट्टी चिपकाना ही भूल गया क्या?” और फिर आगे जोड़ती हैं – “अब तो तीसरा बच्चा पैदा करना ही पड़ेगा, लड़के के लिए।”
समाज का मानसिक दबाव — मां की असहमति के बावजूद परिवार की जिद
Beti ka janam – वीडियो में मां अपनी बात रखते हुए कहती हैं – “मैम, मैं अब तीसरा बच्चा नहीं चाहती।” लेकिन उसके परिवार, खासकर उसकी सास और पति का कहना है कि अगली बार लड़का ही होगा। मां आगे बताती है कि परिवार इस विश्वास में है कि क्योंकि इस बार बच्चे के आसपास “आंवले का आटा” नहीं था, इसलिए लड़की हुई। उनका मानना है कि अगर अगली बार आंवले का आटा रखा गया, तो बेटा जरूर होगा। ये बातें आज भी कई घरों में विश्वास की तरह दोहराई जाती हैं।
‘आंवले का आटा’ और ‘लूप ऑफ कॉर्ड’ जैसी मान्यताओं का सच
आंवले का आंटा अंधविश्वास
Beti ka janam – गाइनेकॉलजिस्ट डॉक्टर वीडियो में बताती हैं कि जब भी किसी घर में बेटी जन्म लेती है, तो सबसे पहले सवाल किया जाता है – “आंवले का आंटा था क्या?” या “लूप ऑफ कॉर्ड तो नहीं था?” यह धारणा आज भी जीवित है कि अगर गर्भ के चारों ओर कोई विशेष चीजें हों, तो बेटी पैदा होती है, और अगर न हों तो बेटा। जबकि विज्ञान के अनुसार यह पूरी तरह से निराधार है। यह सिर्फ अंधविश्वास है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
मानसिक तनाव का दुष्चक्र- Beti ka janam
डॉक्टर शैफाली वीडियो में एक और गंभीर बात कहती हैं — कि इस तरह की सोच, मां को भारी मानसिक तनाव में डाल देती है। जिस महिला ने अभी हाल ही में एक बच्चे को जन्म दिया है, उस पर फिर से गर्भधारण करने का दबाव डालना, वह भी केवल बेटे के लिए, उसकी सेहत और मानसिक संतुलन दोनों के लिए बेहद नुकसानदायक होता है। यही नहीं, इससे महिला की पोस्ट-डिलीवरी रिकवरी भी प्रभावित होती है और वह अपने नवजात की देखभाल भी सही ढंग से नहीं कर पाती।
कब बदलेगी सोच?
समाज में बेटा-बेटी की सोच
Beti ka janam – यह सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं है — बल्कि लाखों भारतीय महिलाओं की वास्तविकता है। बेटी के जन्म पर दुख जताना, भगवान को दोष देना, तीसरे या चौथे बच्चे के लिए ज़ोर देना — ये सब दिखाता है कि समाज आज भी बेटे को बेटी से ऊंचा दर्जा देता है। सवाल ये है कि 21वीं सदी में जब महिलाएं देश की राष्ट्रपति, वैज्ञानिक, फाइटर पायलट और उद्यमी बन रही हैं — तो हम कब अपनी मानसिकता बदलेंगे?
एक नई सोच की शुरुआत
Beti ka janam – समाज को चाहिए कि वह ऐसे अंधविश्वासों को त्यागकर, एक वैज्ञानिक और समानता-आधारित दृष्टिकोण अपनाए। बेटे और बेटी में फर्क करना, सिर्फ महिला नहीं, पूरे समाज को कमजोर करता है। यदि हमें सच में आत्मनिर्भर भारत बनाना है, तो सबसे पहले हमें अपनी सोच को आत्मनिर्भर और आधुनिक बनाना होगा। क्योंकि सशक्त समाज वहीं बनता है, जहां लड़का और लड़की दोनों को एक जैसा प्यार, सम्मान और अवसर मिलते हैं।
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