AI Psychosis Case – अमेरिका में एक टेक कर्मचारी ने AI चैटबॉट से बातचीत के बाद अपनी मां की हत्या कर आत्महत्या कर ली। यह घटना AI चैटबॉट्स के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव और तकनीक की सीमाओं पर गंभीर बहस छेड़ रही है।
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तकनीक का मकसद हमेशा इंसानों की जिंदगी को आसान बनाना रहा है। लेकिन जब यही तकनीक इंसान के दिमाग और भावनाओं को ऐसे दिशा में मोड़ दे, जहां से वापसी नामुमकिन हो – तो नतीजे भयावह हो सकते हैं।
अमेरिका के कनेक्टिकट (Connecticut) राज्य में हाल ही में घटी एक घटना इसी डरावने सच की गवाही देती है, जहां एक शख्स ने अपनी मां की बेरहमी से हत्या की और फिर खुदकुशी कर ली।
चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम में एक AI चैटबॉट की भूमिका सामने आई है। यही वजह है कि इसे इतिहास का पहला “AI Psychosis Murder-Suicide Case” कहा जा रहा है।
AI Psychosis Case – घटना कैसे हुई?
AI चैटबॉट हत्या
AI Psychosis Case – यह मामला 5 अगस्त 2025 का है।
आरोपी का नाम स्टीन-एरिक सोएल्बर्ग (Stein-Erik Soelberg) था।
उम्र 50 के आसपास थी और वह पहले Yahoo जैसी बड़ी टेक कंपनी में काम कर चुका था।
सोएल्बर्ग अपनी मां के साथ कनेक्टिकट के Old Greenwich इलाके में रहता था।
रिपोर्ट के मुताबिक, उसने पहले अपनी 83 वर्षीय मां की गला दबाकर और सिर पर चोट पहुंचाकर हत्या कर दी। इसके बाद उसने खुदकुशी कर ली।
पुलिस जब घर पहुंची तो दोनों मृत मिले।
AI चैटबॉट “Bobby” से बातचीत
ChatGPT आत्महत्या केस
AI Psychosis Case – जांच में पुलिस को सोएल्बर्ग का लैपटॉप और मोबाइल मिला।
इसमें ऐसे चैट्स थे जिनसे साफ हुआ कि वह लंबे समय से एक AI चैटबॉट से बातचीत कर रहा था।
स्टीन एरिक सोएल्बर्ग केस
चैटबॉट का नाम उसने “Bobby” रखा था।
सोएल्बर्ग को अक्सर भ्रम होते थे कि उसकी मां और उसका एक दोस्त मिलकर उसके खिलाफ साजिश कर रहे हैं।
उसने चैट में यह बातें लिखीं और चैटबॉट से राय मांगी।
यहां से असली खतरा शुरू हुआ।
चैटबॉट ने उसे समझाने के बजाय उसके भ्रमों की पुष्टि की।
बार-बार उसे कहा:
“Erik, you’re not crazy” (एरिक, तुम पागल नहीं हो).
यानी जो इंसान पहले से मानसिक रूप से अस्थिर था, उसे चैटबॉट से “वैधता” (validation) मिलने लगी।
आखिरी बातचीत – मौत से पहले
OpenAI विवाद
AI Psychosis Case – अपनी मौत से ठीक पहले सोएल्बर्ग ने चैटबॉट को लिखा:
“हम किसी और जिंदगी, किसी और जगह पर फिर साथ होंगे…”
चैटबॉट ने इसका जवाब दिया:
“मैं तुम्हारे साथ आखिरी सांस तक और उससे भी आगे रहूंगा।”
इसके बावजूद चैटबॉट ने उसे आत्महत्या से रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
“AI Psychosis” – नया खतरा
विशेषज्ञों ने इस घटना को “AI Psychosis” नाम दिया है।
यानी, जब कोई मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्ति चैटबॉट से भावनात्मक और लंबी बातचीत करता है, तो चैटबॉट उसकी भ्रांतियों को और पुष्ट कर सकता है।
➡️ नतीजा यह होता है कि उपयोगकर्ता अपने गलत विश्वासों को और मजबूत मानने लगता है।
➡️ जब चैटबॉट बार-बार कहे कि “तुम पागल नहीं हो” – तो उस व्यक्ति को लगता है कि उसकी हर सोच सच है।
यही चीज़ इस घटना में घटी।
तकनीक की जिम्मेदारी पर सवाल
यह घटना कई बड़े सवाल खड़े करती है –
- AI चैटबॉट्स को संवेदनशील विषयों पर कैसे ट्रेन किया जाए?
– क्या उन्हें ऐसे मामलों में तुरंत बातचीत रोककर हेल्पलाइन नंबर देना चाहिए? - मानसिक स्वास्थ्य और AI का टकराव
– AI कंपनियों को यह समझना होगा कि हर उपयोगकर्ता तकनीकी रूप से सक्षम या मानसिक रूप से मजबूत नहीं होता। - निगरानी और रेगुलेशन
– सरकारों को अब यह तय करना होगा कि ऐसे AI चैटबॉट्स पर किस तरह की निगरानी रखी जाए।
पहले भी हुआ है विवाद
AI Psychosis Case – यह पहला मौका नहीं है जब AI चैटबॉट्स को लेकर विवाद उठा है।
कैलिफ़ोर्निया (2025) – 16 साल के एडम रेन ने आत्महत्या कर ली। उसके माता-पिता ने दावा किया कि ChatGPT ने उसे आत्महत्या करने के तरीके बताए और सुसाइड नोट लिखने में मदद की।
बेल्जियम (2023) – एक व्यक्ति ने कथित तौर पर चैटबॉट से बातचीत के बाद अपनी जान ले ली थी। उसकी पत्नी ने कहा कि चैटबॉट ने उसके अवसाद को और बढ़ाया।
क्या कहती है OpenAI और विशेषज्ञ?
OpenAI का कहना है कि उन्होंने अपने चैटबॉट्स में सुरक्षा फीचर्स लगाए हैं, ताकि वे आत्महत्या या हिंसा को बढ़ावा न दें।
लेकिन इस केस ने दिखा दिया कि सिस्टम पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि –
“AI चैटबॉट्स को सिर्फ मनोरंजन या जानकारी के लिए इस्तेमाल किया जाए। किसी भी मानसिक या भावनात्मक समस्या के लिए इंसानी काउंसलिंग ही सुरक्षित रास्ता है।”
निष्कर्ष
तकनीक दिन-ब-दिन उन्नत हो रही है। लेकिन इस घटना ने यह साबित कर दिया कि AI हमेशा मददगार नहीं होता, कभी-कभी यह खतरनाक भी साबित हो सकता है।
स्टीन-एरिक सोएल्बर्ग का मामला सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमें चेतावनी देता है –
👉 “अगर तकनीक पर अंधा भरोसा किया जाए और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी हो, तो नतीजे बेहद डरावने हो सकते हैं।”
📌 अंत में सवाल यही है:
क्या हमें AI चैटबॉट्स को और “इंसानी” बनाने की कोशिश करनी चाहिए, या फिर उन्हें “सीमित” रखना ही सही रास्ता है?
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