Nepal Violence – नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़के ‘Gen Z रिवोल्यूशन’ ने हिंसक रूप ले लिया है। संसद भवन पर धावा, पुलिस गोलीबारी में 17 मौतें, सैकड़ों घायल। क्या बांग्लादेश और श्रीलंका की तरह नेपाल में भी सोशल मीडिया आंदोलन तख्तापलट की ओर बढ़ रहा है? जानिए इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि, कारण, सरकार और विपक्ष की भूमिका तथा सोशल मीडिया कंपनियों की बढ़ती ताकत का विश्लेषण।
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Nepal Violence
Nepal Social Media Ban
काठमांडू की सड़कों पर धुएं के बादल, संसद भवन की दीवारों पर चढ़ते युवा, पुलिस की गोलियों से गिरे छात्र और हर तरफ गूंजते नारे – “हमें यह सरकार नहीं चाहिए!”।
8 सितंबर 2025, नेपाल की राजनीति के इतिहास में दर्ज हो गया। यह सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक ऐसी चिंगारी थी जिसने बांग्लादेश और श्रीलंका की यादें ताजा कर दीं।
नेपाल में सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स – फेसबुक, ट्विटर (X), इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप सहित – पर बैन लगाया।
सरकार का तर्क था कि ये कंपनियां नेपाल में पंजीकृत नहीं हैं और सुरक्षा कारणों से इन्हें बंद करना जरूरी था। लेकिन युवाओं ने इसे सीधे-सीधे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मान लिया।
बस फिर क्या था? देखते ही देखते यह गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। अब सवाल उठ रहा है – क्या नेपाल में भी बांग्लादेश और श्रीलंका जैसी स्थिति बन सकती है? और क्या सोशल मीडिया कंपनियां इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि वे किसी भी देश की सत्ता को हिला दें?
नेपाल में ‘Gen Z रिवोल्यूशन’ की शुरुआत
नेपाल Gen Z Revolution
Nepal Violence – नेपाल में इस आंदोलन को लोग “Gen Z Revolution” कह रहे हैं।
क्योंकि इसकी अगुवाई मुख्यतः 18–30 साल के युवा और छात्र कर रहे हैं।
सोशल मीडिया बैन इसका तत्काल कारण था।
लेकिन इसके साथ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता जैसे पुराने घाव भी भरभरा कर सामने आ गए।
युवा कहने लगे – अगर हमारी आवाज उठाने के मंच ही छीन लिए गए, तो लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह गया?
प्रदर्शन का रूप इतना तेज़ हुआ कि काठमांडू की संसद पर धावा बोला गया।
सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच भीषण झड़प हुई।
पुलिस फायरिंग में 17 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हो गए।
संसद भवन पर हमला और हिंसा
Nepal Parliament Attack
Nepal Violence – नेपाल की संसद के बाहर सुबह से ही भीड़ जमा थी।
जैसे-जैसे दिन चढ़ा, गुस्सा बढ़ता गया।
भीड़ ने बैरिकेड्स तोड़ दिए।
संसद की दीवारें लांघने की कोशिश की।
पुलिस ने लाठीचार्ज, आंसू गैस और पानी की बौछारों से भीड़ को रोकने की कोशिश की।
लेकिन हालात इतने बिगड़े कि अंततः फायरिंग करनी पड़ी।
इस दौरान –
17 मौतें हुईं।
14 सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई।
9 सरकारी गाड़ियों को जला दिया गया।
सैकड़ों निजी वाहन तोड़फोड़ में क्षतिग्रस्त हुए।
काठमांडू पूरी तरह ठप हो गया।
सरकार का तर्क बनाम जनता का गुस्सा
Nepal Violence – सरकार का पक्ष:
सोशल मीडिया कंपनियों ने नेपाल में अपने दफ्तर नहीं खोले।
पंजीकरण नहीं कराया।
फेक न्यूज और अफवाहें फैलाने से सुरक्षा खतरा बढ़ रहा था।
जनता का पक्ष:
Nepal Violence – सरकार यह सिर्फ बहाना बना रही है।
असल मकसद युवाओं की आवाज़ दबाना है।
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी पर पर्दा डालने के लिए सोशल मीडिया बैन किया गया।
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति का गला घोंटा जा रहा है।
पीएम ओली पर बढ़ता दबाव
Nepal Violence – प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
उन्हें ‘तानाशाह’ कहा जा रहा है।
इस्तीफे की मांग की जा रही है।
विपक्षी दलों ने आपात बैठक बुला ली है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी नेपाल पर नज़र गड़ाए बैठा है।
भारत ने एहतियातन सीमा पर SSB की तैनाती कड़ी कर दी है।
अमेरिका और यूरोपीय देशों ने बयान जारी कर चिंता जताई है।
बांग्लादेश और श्रीलंका की याद
नेपाल का यह संकट नया नहीं लगता।
इससे पहले –
- बांग्लादेश – युवाओं ने सोशल मीडिया के जरिए आंदोलन किया। संसद और सरकारी दफ्तरों पर हमला बोला और अंततः सरकार गिर गई।
- श्रीलंका – महंगाई और आर्थिक संकट से परेशान जनता ने राष्ट्रपति भवन तक घेर लिया। यहां भी सोशल मीडिया ने भीड़ को संगठित किया।
तीनों जगह एक कॉमन पैटर्न दिख रहा है –
👉 सोशल मीडिया आंदोलन की नींव रखता है।
👉 युवाओं को संगठित करता है।
👉 आंदोलन सरकार पलट तक पहुंच जाता है।
सोशल मीडिया: हथियार या खतरा?
Nepal Violence – सोशल मीडिया ने लोकतंत्र को नई ताकत दी।
जनता अपनी बात सीधे कह सकती है।
सरकार की गलतियों को उजागर कर सकती है।
भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर सकती है।
लेकिन इसके खतरे भी उतने ही बड़े हैं –
फेक न्यूज और अफवाहों से हालात बिगड़ते हैं।
बाहरी ताकतें किसी देश की राजनीति में दखल देती हैं।
युवाओं को भड़काकर विद्रोह कराया जा सकता है।
कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स कहती हैं कि सोशल मीडिया कंपनियां सिर्फ टाइमपास का जरिया नहीं रहीं, बल्कि वे अब राजनीतिक घटनाक्रम को प्रभावित करने की ताकत रखती हैं।
नेपाल का संकट – आगे क्या?
Nepal Emergency
Nepal Violence – नेपाल का यह आंदोलन अब सिर्फ सोशल मीडिया बैन हटाने का मुद्दा नहीं रहा।
यह सीधे-सीधे सरकार बदलने की मांग में बदल चुका है।
विपक्ष सरकार को घेर रहा है।
युवाओं की भीड़ लगातार सड़कों पर बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री ओली पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा है।
अगर हालात काबू में नहीं आए तो नेपाल भी बांग्लादेश और श्रीलंका की राह पकड़ सकता है।
निष्कर्ष – लोकतंत्र और सोशल मीडिया की दोधारी तलवार
Nepal Violence – नेपाल की हिंसा यह साबित करती है कि आज की दुनिया में सोशल मीडिया लोकतंत्र की धड़कन भी है और सबसे बड़ा खतरा भी।
यह युवाओं को एकजुट कर सरकारों को जवाबदेह बना सकता है।
लेकिन यह अफवाहों और बाहरी ताकतों के हाथों में हथियार भी बन सकता है।
नेपाल का यह संकट एक चेतावनी है –
सरकारें सोशल मीडिया को बैन करके जनता को खामोश नहीं कर सकतीं।
उन्हें पारदर्शी शासन और युवाओं को अवसर देकर ही विश्वास जीतना होगा।
वरना लोकतंत्र की दीवारें किसी भी दिन सोशल मीडिया की ताकत से हिल सकती हैं।
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