शबनम अली केस – भारत के अपराध इतिहास में कुछ ऐसे मामले सामने आते हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर मन सिहर उठता है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले का शबनम अली केस भी ऐसा ही एक मामला है।
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शबनम अली केस – यह कहानी न सिर्फ़ इसलिए चौंकाती है क्योंकि इसमें सात लोगों का बेरहमी से कत्ल हुआ, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इस हत्याकांड की दोषी एक शिक्षित महिला थी, जिसने अपने ही परिवार का खून बहाया।
पिता ने अपनी इकलौती बेटी शबनम को नाजों से पाला था। उसे बेहतर तालीम भी दिलाई गई थी। अंग्रेजी से एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद शबनम शिक्षामित्र बन गई। इसके कुछ ही समय बाद शबनम का गांव के ही आठवीं पास सलीम से प्रेम हो गया। शबनम सैफी तो सलीम पठान बिरादरी से था। इसके कारण शबनम के परिवार को यह रिश्ता स्वीकार नहीं था
अप्रैल 2008 की यह घटना आज भी लोगों के ज़हन में दर्ज है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे — क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ, और इसका समाज पर क्या असर पड़ा।
शबनम अली केस – कब और कैसे हुआ यह कत्ल?
14-15 अप्रैल 2008 की रात, उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले के बावंखेड़ी गाँव में एक ऐसी त्रासदी घटी जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। शबनम अली नाम की महिला और उसके प्रेमी सलीम ने मिलकर सात लोगों की हत्या कर दी।
हत्या के शिकार थे:
शबनम के पिता शौकत अली
माँ हाशमी
भाई अनीस और राशिद
भाभी अंजुम
10 महीने का भतीजा अर्श
चचेरा भाई
हत्या की रात पहले सभी को दूध में नींद की गोलियाँ पिलाई गईं। जब सब बेहोश हो गए तो कुल्हाड़ी और गले दबाकर एक-एक करके उनकी जान ली गई। सबसे दिल दहलाने वाली बात यह थी कि मासूम अर्श को भी बख्शा नहीं गया — उसे गला दबाकर खत्म कर दिया गया।
शबनम कौन थी ?
शबनम अली केस – शबनम कोई अनपढ़ या साधारण महिला नहीं थी।वह MA in English और Geography पास थी।गाँव की प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका थी।परिवार आर्थिक और सामाजिक रूप से अच्छा था।उसकी ज़िंदगी में मोड़ आया जब उसका प्रेम संबंध सलीम नाम के युवक से हुआ।
सलीम कौन था?
सलीम उसी गाँव का रहने वाला था।
वह एक मामूली लकड़ी का काम करने वाला मज़दूर था।
शबनम के परिवार से उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति काफी नीचे थी।
जातिगत आधार पर भी दोनों परिवार अलग थे।
यही कारण था कि शबनम के परिवार ने इस रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं किया।
क्यों हुआ यह कत्ल? – संभावित कारण
शबनम अली केस
- प्रेम और परिवार की अस्वीकृति
शबनम और सलीम एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन परिवार इसके खिलाफ था। परिवार की मंज़ूरी न मिलने पर दोनों ने सोचा कि अगर बाधा परिवार है, तो उन्हें रास्ते से हटा देना ही समाधान है।
- सामाजिक और जातिगत दबाव
भारतीय ग्रामीण समाज में आज भी जाति और बिरादरी के आधार पर रिश्ते तय होते हैं। शबनम “सैफी” मुस्लिम थी जबकि सलीम “पठान” बिरादरी से। इस असमानता को परिवार स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
- मनोवैज्ञानिक कारण
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस केस में “गुस्सा, हताशा और असंतुलित मानसिक स्थिति” ने बड़ी भूमिका निभाई। शबनम और सलीम दोनों ने स्थिति को तार्किक तरीके से हल करने के बजाय अपराध का रास्ता चुना।
कैसे अंजाम दिया गया हत्याकांड?
शबनम अली केस – शबनम ने दूध में नींद की गोलियाँ मिलाकर पूरे परिवार को पिलाई।
जब सभी सो गए, तो उसने सलीम को बुलाया।
दोनों ने मिलकर कुल्हाड़ी से काटकर एक-एक कर सबको मार डाला।
मासूम अर्श को भी नहीं छोड़ा गया, उसे गला दबाकर मार डाला गया।
घटना के बाद पुलिस ने शक के आधार पर दोनों से पूछताछ की।
कॉल डिटेल्स, फॉरेंसिक सबूत और गवाही ने साफ़ कर दिया कि हत्या की साज़िश दोनों ने मिलकर रची थी।
कानूनी प्रक्रिया – अदालत से राष्ट्रपति तक
शबनम अली केस
जिला अदालत
2010 में अमरोहा की ज़िला अदालत ने शबनम और सलीम दोनों को मौत की सजा सुनाई।
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी।
मर्सी पिटिशन
शबनम ने राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास दया याचिका दायर की, लेकिन 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे खारिज कर दिया।
फांसी की तैयारी
शबनम को फांसी देने के लिए उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल चुनी गई, क्योंकि वहीं महिलाओं के लिए फांसीघर है।
बिहार के बुक्षार से फांसी की रस्सियाँ मंगवाई गईं।
पवन जल्लाद नामक फांसी देने वाले जल्लाद ने फांसीघर का निरीक्षण भी किया।
अगर फांसी दी जाती है तो शबनम स्वतंत्र भारत की पहली महिला होगी जिसे फांसी दी जाएगी
शबनम का बेटा – मासूम की कहानी
शबनम अली केस – इस घटना के कुछ महीनों बाद, दिसंबर 2008 में शबनम ने जेल के अंदर ही एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम ताज रखा गया।
ताज को बाद में एक सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक ने गोद लिया।
आज वह स्कूल जाता है और पढ़ाई कर रहा है।
कई बार उसने अपनी माँ के लिए राष्ट्रपति से दया की अपील भी की है।
यह कहानी और भी भावुक बना देती है — एक ओर माँ का अपराध, दूसरी ओर मासूम बेटे का संघर्ष।
समाज और मीडिया की प्रतिक्रिया
शबनम अली केस – गाँव के लोग शबनम का नाम तक लेना पसंद नहीं करते।
मोहम्मद आजाद खान का कहना है कि शबनम को यदि जल्द ही फांसी पर लटका दिया जाता तो शायद उसके खौफ में और महिलाएं अपनों के खून से अपने हाथ न रंगतीं। जब शबनम को जीने का कोई अधिकार ही नहीं है तो उसे क्यों जीवन दिया जा रहा है। बुजुर्ग मोहम्मद रमजानी का कहना है कि एक अरसे से शबनम को फांसी पर लटकाए जाने की बातें की जा रही हैं, लेकिन इस देश के अंदर उसे मौत क्यों नहीं दी जा रही। यदि शबनम को फांसी पर लटका दिया गया होता तो दूसरी महिलाएं भी ऐसा करने से डरतीं।
परिवार के लोग अब उस घर के पास भी नहीं जाते जहाँ यह घटना हुई थी।
मीडिया ने इसे “लव स्टोरी से खून की कहानी” के नाम से पेश किया।
समाज में यह चर्चा भी हुई कि अगर एक पढ़ी-लिखी महिला ऐसा कर सकती है, तो शिक्षा अपने आप में अपराध रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।
वर्तमान स्थिति (अगस्त 2025 तक) – शबनम अली केस
- फांसी अभी तक लागू नहीं हुई
मीडिया रिपोर्ट्स और कोर्ट विवरणों से पता चलता है कि कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी—मूल रूप से जारी किया गया फांसी वॉरंट सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रक्रियाात्मक गलतियों के कारण रद्द कर दिया गया था ।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि जब तक सभी कानूनी उपाय समाप्त न हो जाएँ, तब तक किसी दोषी को फांसी नहीं दी जा सकती—जिसमें review petition और mercy petition शामिल हैं ।
- Review और Mercy Petitions
Review Petition सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गई थी (2020 तक) ।
Mercy Petition भी राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा खारिज की गई थी ।
- फांसी के लिए और कोई तारीख नहीं है
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मैथुरा जेल में महिला फांसीघर की तैयारी चल रही थी और रस्सियाँ मंगवाई गई थीं लेकिन कोई निश्चित तारीख नहीं दी गई थी ।
2021 तक की रिपोर्ट्स के अनुसार भी फांसी की तिथि तय नहीं हुई थी और प्रक्रिया अभी भी लंबित थी ।
घर के आंगन में सात कब्र ताजा कर देती हैं नरसंहार की यादें
शबनम अली केस – शौकत अली के घर के आंगन में सात कब्रें आज भी उस नरसंहार की गवाही देती हैं, जिसमें शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के ही सात लोगों का गला काट कर मौत के घाट उतार दिया था।
घर में रहता है शौकत अली के भाई का परिवारशबनम के पिता मास्टर शौकत अली के घर में अब उनके भाई सत्तार अली का परिवार रह रहा है। सत्तार अली अपनी पत्नी फातिमा, बेटे शोएब और बेटी फरहाना के साथ रहते हैं। जिन कमरों में शबनम ने अपने परिजनों का कत्ल किया था, सत्तार ने उनकी रंगाई पुताई भी करवा दी है।
निष्कर्ष – सबक क्या मिलता है?
शबनम अली केस हमें कई सवालों के साथ छोड़ जाता है:
क्या प्रेम के नाम पर इतना बड़ा अपराध जायज़ ठहराया जा सकता है?
क्या सामाजिक और जातिगत दबाव वाकई लोगों को अपराध की ओर धकेल देते हैं?
क्या शिक्षा के बावजूद इंसान अपने भावनाओं पर काबू नहीं रख पाता?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि अपराध केवल आर्थिक या अशिक्षा का परिणाम नहीं होता, बल्कि मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और भावनात्मक कारक भी उतने ही ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शबनम अली केस
Q1. क्या शबनम भारत की पहली महिला होगी जिसे फांसी दी जाएगी?
हाँ, अगर फांसी दी जाती है तो वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला होगी जिसे फांसी होगी।
Q2. क्या उसकी फांसी की तारीख तय हुई?
अभी तक अदालत से अंतिम वारंट जारी नहीं हुआ है, इसलिए तारीख तय नहीं है।
Q3. उसका बेटा कहाँ है?
शबनम का बेटा ताज अब एक सामाजिक कार्यकर्ता के संरक्षण में रह रहा है और पढ़ाई कर रहा है।
Q4. शबनम और सलीम को क्यों सज़ा सुनाई गई?
क्योंकि सभी सबूत (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, कॉल डिटेल, गवाह) साबित करते थे कि हत्या की साज़िश उन्हीं दोनों ने मिलकर रची थी।
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