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असम शव नियम 2025 – अस्पताल को 2 घंटे में सौंपना होगा परिजनों को शव

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असम शव नियम 2025 अब अस्पताल नहीं रोक सकेंगे शव, 2 घंटे में सौंपना होगा परिजनों को शव “बकाया बिल का बहाना अब नहीं चलेगा”

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का बड़ा ऐलान – “बकाया बिल का बहाना अब नहीं चलेगा”

असम शव नियम 2025

असम शव नियम 2025 -असम सरकार का एक मानवीय फैसला

स्वास्थ्य सेवा सिर्फ इलाज की प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की एक संवेदनशील रेखा होती है। जब कोई व्यक्ति अस्पताल में अंतिम सांस लेता है, तो उसके परिजनों की उम्मीद सिर्फ एक होती है – सम्मान के साथ अंतिम विदाई। लेकिन जब बकाया बिलों के नाम पर अस्पताल शव को रोक लेते हैं, तो यह न केवल मानव गरिमा का अपमान होता है, बल्कि एक क्रूर सामाजिक विफलता को भी दर्शाता है।

असम सरकार ने इस अमानवीय व्यवहार पर रोक लगाने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है। अब किसी भी अस्पताल – चाहे सरकारी हो या निजी – को मरीज के शव को दो घंटे से अधिक नहीं रोकने की अनुमति होगी, भले ही बिल बकाया हो।

असम सरकार का नया नियम: क्या है इसमें ?

बकाया बिल पर शव रोकना अवैध -Assam hospital dead body rule

असम शव नियम 2025 :- मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह ऐलान किया कि राज्य में अब कोई भी अस्पताल मृतक का शव सिर्फ इस आधार पर नहीं रोक सकता कि इलाज का बिल भुगतान नहीं हुआ है।

मुख्य बिंदु:

मौत की पुष्टि के अधिकतम दो घंटे के भीतर अस्पताल को शव परिजनों को सौंपना अनिवार्य होगा।

बकाया बिल की राशि को आधार बनाकर शव को रोकना अब अवैध माना जाएगा।

आदेश का उल्लंघन करने पर अस्पताल पर कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि अब तक का व्यवहार असंवेदनशील और शोषणकारी था, जिसे अब सहन नहीं किया जाएगा।

यह नियम क्यों ज़रूरी था ?

असम शव नियम 2025 :- भारत के कई राज्यों में ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां मरीज की मौत के बाद अस्पतालों ने शव को “बंधक” बना लिया:

अस्पतालों ने लाखों रुपये के बिलों के भुगतान की मांग करते हुए शव को रातों-रात फ्रीजर में रखा।

गरीब परिजन भीख मांगकर या कर्ज लेकर शव छुड़वाते थे।

कई मामलों में पुलिस हस्तक्षेप के बाद ही शव परिजनों को मिल पाया।

इन घटनाओं ने स्वास्थ्य व्यवस्था की नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का बयान

राज्य के मुखिया डॉ. सरमा ने बेहद साफ और संवेदनशील लहजे में कहा:

> “अस्पताल सेवा का स्थान है, मुनाफाखोरी का नहीं। किसी भी परिस्थिति में शव को बंधक बनाना नैतिक और कानूनी दोनों रूप से गलत है।”

उन्होंने आगे कहा कि इस आदेश से गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों को राहत मिलेगी जो अक्सर आर्थिक मजबूरियों के कारण अपमानित महसूस करते हैं।

कानूनी आधार और प्रशासनिक दिशा

इस आदेश को असम सरकार एक राज्यव्यापी अधिसूचना के रूप में जारी कर चुकी है। इसके अंतर्गत:

अस्पतालों को अपनी मृत्यु प्रमाणन और शव-वितरण प्रक्रिया में बदलाव लाना होगा।

एक स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई जा सकती है जो इस नियम के पालन की निगरानी करेगी।

स्वास्थ्य विभाग इस आदेश के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए नियमित निरीक्षण करेगा।

आम जनता की प्रतिक्रिया

असम शव नियम 2025 :- असम में आम नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य अधिकार संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। कुछ टिप्पणियां जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं:

“गरीबों के लिए ये बड़ा राहत का कदम है। अब कम से कम अपनों को सम्मानपूर्वक विदा तो कर पाएंगे।”
“सरकार ने एक जरूरी और मानवीय फैसला लिया है, अब पूरे देश को इसे अपनाना चाहिए।”
“बिल वसूली का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन शव रोकना निंदनीय था। अब न्याय मिला है।”

अस्पताल प्रबंधन का पक्ष

कुछ निजी अस्पतालों ने इस निर्णय को लेकर आशंका जताई है, खासकर ऐसे मामलों में जहां मरीजों के परिवार इलाज के खर्च को चुकाने में असमर्थ रहते हैं।

उनका कहना है कि:

अस्पताल भी एक आर्थिक ढांचा है, और बिल वसूलना उनकी आवश्यक जिम्मेदारी है।

यदि शव सौंपने के बाद परिवार बिल चुकाने से इंकार कर दे तो अस्पताल को भारी नुकसान होता है।

हालांकि, सरकार का जवाब सीधा है – “कानूनी तरीके से वसूली का अधिकार अस्पतालों को है, लेकिन शव को बंधक बनाना अधिकार क्षेत्र से बाहर है।”

क्या कहता है आंकड़ों का सच?

असम शव नियम 2025 :- 2019 से 2024 के बीच असम में 80 से अधिक मामलों में शव बकाया बिल के कारण रोके गए थे।

इनमें से 60% से अधिक केस गरीब परिवारों से जुड़े थे, जो अंतिम संस्कार तक के लिए पैसे जुटाने में असमर्थ थे।

कई बार NGO और मीडिया हस्तक्षेप से शवों को मुक्त करवाया गया।

क्या बाकी राज्यों को भी चाहिए ऐसा ही कानून?

अस्पतालों पर सरकारी नियंत्रण

असम शव नियम 2025 :- असम सरकार का यह फैसला अब पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।

दूसरे राज्यों के लिए यह नीति क्यों ज़रूरी है?

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों से भी इस तरह के मामलों की खबरें आती रही हैं।

गरीब तबके को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ती है।

केंद्र सरकार यदि इस तरह का अखिल भारतीय कानून बनाए, तो यह एक बड़ी सामाजिक क्रांति होगी।

संवेदनशीलता बनाम सिस्टम

असम शव नियम 2025 :- कई बार अस्पताल भी दबाव में होते हैं — महंगी मशीनें, महंगे डॉक्टर, लाखों की दवाएं। लेकिन इस सिस्टम के बीच एक शव, जो अब बोल नहीं सकता, उसके सम्मान को बरकरार रखना हमारी जिम्मेदारी है।

बकाया बिल वसूली का कानूनी तरीका मौजूद है — कोर्ट, उपभोक्ता फोरम, वसूली एजेंसियां। लेकिन अंतिम संस्कार में रुकावट डालना मानवता का हनन है।

एक साहसी और मानवीय कदम

असम शव नियम 2025 यह फैसला स्वास्थ्य व्यवस्था में संवेदनशीलता और जवाबदेही को संतुलित करता है। यह दिखाता है कि प्रशासनिक इच्छाशक्ति हो तो अस्पतालों की मनमानी पर भी लगाम लगाई जा सकती है।

यह एक ऐसा कानून है जो इंसान की मौत के बाद की गरिमा को जीवित रखता है। शायद यही हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी परीक्षा होती है — कि हम मृत व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।

आपकी राय क्या है?

क्या यह असम शव नियम 2025 पूरे भारत में लागू होना चाहिए? क्या आपने भी कभी ऐसा अनुभव किया है जब किसी मरीज के शव को रोका गया हो?
कमेंट बॉक्स में अपनी बात जरूर रखें।

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Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

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