Skip to content

जटिंगा गांव का रहस्य: जहां हर साल पक्षी करते हैं ‘आत्महत्या’

Spread the love

जटिंगा गांव : जानिए असम के जटिंगा गांव की पूरी रहस्यमयी कहानी, जहां हर साल पक्षी कोहरे में उड़ते हुए मौत की ओर खिंचे चले आते हैं। विज्ञान, लोककथा और अंधविश्वास की परतें खोलता यह ब्लॉग।

जटिंगा गांव

जटिंगा गांव – एक रहस्यमयी छोटा सा गांव :

असम के दीमा हसाओ ज़िले की हरी-भरी वादियों के बीच बसा है एक खूबसूरत और रहस्यमयी गांव — जटिंगा। चारों ओर फैले बोरैल पर्वतों की गोद में स्थित यह छोटा सा गांव लगभग 2500 लोगों का घर है। दूर से देखने पर यह गांव किसी सपने जैसा शांत और आकर्षक लगता है, लेकिन जब आप इसकी गहराई में झांकते हैं, तो इस शांति के पीछे एक ऐसा अंधेरा रहस्य छिपा मिलता है, जो रोमांच से नहीं, बल्कि डर और रहस्य से भरा हुआ है।

जटिंगा शब्द की उत्पत्ति जेमी नागा जनजाति की भाषा से हुई है, जिसका अर्थ होता है – “पानी और वर्षा की राह”। लेकिन यह गांव अपने नाम से ज्यादा एक रहस्यमयी घटना के लिए जाना जाता है, जो 1900 के दशक की शुरुआत से देखी जा रही है।

पिछले सौ वर्षों से यह जगह न केवल स्थानीय लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बनी हुई है, बल्कि वैज्ञानिकों और पक्षी विशेषज्ञों (ऑर्निथोलॉजिस्ट्स) को भी यहां खींच लाती है। हर कोई यही जानना चाहता है कि आखिर क्यों हर साल सैकड़ों पक्षी रात के समय उड़ते हुए इस गांव में आकर अजीब ढंग से मौत को गले लगा लेते हैं।

यह घटना जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही रहस्यमयी भी — और आज तक इसका पूरा सच किसी के हाथ नहीं लग पाया है।

भारत में कई रहस्यमयी जगहें हैं, लेकिन असम का जटिंगा गांव एक ऐसी अनोखी जगह है जिसे “बर्ड सुसाइड विलेज” यानी पक्षियों की आत्महत्या करने वाला गांव कहा जाता है। हर साल एक खास समय पर यहां पक्षी अजीब तरीके से गिरकर मर जाते हैं। यह घटना न केवल आम लोगों को चौंकाती है, बल्कि वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए भी पहेली बनी हुई है। क्या यह आत्महत्या है? क्या यह कोई अदृश्य ताकत है? या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण छिपा है?

जटिंगा गांव की भौगोलिक स्थिति

जटिंगा गांव असम के दिमा हसाओ जिले में स्थित है, जिसे पहले नॉर्थ कछार हिल्स के नाम से जाना जाता था। यह छोटा सा गांव 600 से 700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। निकटतम शहर हाफलॉन्ग है, जो लगभग 9 किलोमीटर दूर है। यह इलाका पहाड़ी, हरियाली और घने कोहरे से ढका रहता है, खासकर मानसून के बाद के महीनों में।

जटिंगा गांव

घटना क्या है? – हर साल पक्षी क्यों मरते हैं?

जटिंगा गांव में सितंबर से नवंबर के बीच, खासकर अंधेरी और कोहरे वाली रातों में, 6 बजे से 9 बजे के बीच सैकड़ों पक्षी अचानक उड़कर गांव की ओर आते हैं और जमीन पर गिर जाते हैं। इनमें से कई मर जाते हैं, और कुछ बुरी तरह घायल हो जाते हैं।

अजीब बात यह है कि ये सभी पक्षी स्थानीय प्रजातियों के नहीं होते — ये प्रवासी पक्षी होते हैं, जो आसपास के जंगलों से आते हैं। इन पक्षियों में शामिल होते हैं:

टाइगर बिटर्न

ब्लैक ड्रोंगो

पिट्टा

किंगफिशर

इग्रेट आदि

और भी हैरानी की बात यह है कि ये पक्षी सिर्फ गांव की ओर उड़ते ही नहीं, बल्कि ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य ताकत उन्हें जबरन खींच रही हो।
वे अचानक उड़ान के दौरान पेड़ों, घरों और दीवारों से टकरा जाते हैं, मानो उन्हें खुद पर कोई नियंत्रण न हो। यह दृश्य न सिर्फ चौंकाने वाला होता है, बल्कि ऐसा महसूस होता है जैसे वे किसी अनदेखी शक्ति के वश में आकर अपनी दिशा और होश खो बैठते हैं।

यह अजीब घटना जटिंगा गांव के एक सिर्फ 1.5 किलोमीटर लंबे इलाके में ही होती है, जो गांव की पहाड़ी धार (रिज) पर फैला है। इसी कारण से जटिंगा को कई बार “पक्षियों का बरमूडा ट्रायंगल” भी कहा गया है।

दिलचस्प बात यह है कि यह घटना अक्सर अमावस्या की रातों या उन रातों में होती है जब प्राकृतिक रोशनी नहीं होती। ऐसे समय में पक्षी कृत्रिम रोशनी, जैसे टॉर्च, बल्ब या मशाल की ओर असामान्य रूप से आकर्षित होते हैं — और उसी रोशनी की ओर भागते हुए खुद को खतरे में डाल देते हैं।

लोककथाएं और अंधविश्वास : जटिंगा गांव

इस रहस्यमयी घटना के सबसे पहले गवाह बने थे 1900 के दशक में यहां बसे नागा समुदाय के लोग। जब उन्होंने देखा कि पक्षी रात के समय अजीब ढंग से मर रहे हैं, तो उन्हें लगा कि यह किसी शाप या दुष्ट शक्ति का प्रभाव है। भय के चलते उन्होंने जटिंगा गांव को छोड़ दिया।

कुछ वर्षों बाद, 1905 में जैंतिया जनजाति इस वीरान गांव में आकर बस गई। उन्होंने भी इन घटनाओं को देखा, लेकिन नागाओं की तरह उन्होंने इसे मनहूस या अशुभ नहीं माना।
जैंतिया लोगों के लिए यह घटना एक अवसर बन गई — वे इन पक्षियों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करने लगे और कठिन पर्वतीय जीवन में अपनी आजीविका चलाने का साधन बना लिया।

पहले के समय में जब कोई पक्षी गिरता था, तो ग्रामीण मशालों या डंडों से उन्हें मार देते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि ये “शापित जीव” हैं। वर्षों तक यह प्रक्रिया चलती रही, जब तक कि वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने इसमें रुचि नहीं ली।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण – पक्षी आत्महत्या क्यों करते हैं?

1. कोहरा और दिशा भ्रम (Disorientation):

वर्षा के बाद जटिंगा क्षेत्र में जबरदस्त कोहरा छा जाता है। पक्षी इस कोहरे और कम दृश्यता के कारण दिशा भ्रमित हो जाते हैं।

2. प्रकाश की ओर आकर्षण (Phototaxis):

कुछ पक्षी स्वाभाविक रूप से प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं। जब ग्रामीण मशाल, लैम्प या घर की रोशनी जलाते हैं, तो पक्षी उसी दिशा में उड़ते हुए दीवारों, पेड़ों या लोगों से टकरा जाते हैं। इससे उन्हें गहरी चोट लगती है और वे मर जाते हैं।

3. आदत में परिवर्तन (Behavioral Change):

जटिंगा गांव : वर्षा के बाद खाने की कमी, स्थान परिवर्तन और मौसम के असंतुलन के कारण पक्षी असामान्य व्यवहार करने लगते हैं। वे सामान्य से अधिक सक्रिय हो जाते हैं और बिना दिशा के उड़ते हैं।

एक और जटिल लेकिन दिलचस्प सिद्धांत यह मानता है कि इस क्षेत्र की चट्टानों और पहाड़ी रिज में मौजूद चुंबकीय गुण इस रहस्यमयी घटना के पीछे जिम्मेदार हैं।

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India) के डॉ. सुधीर सेनगुप्ता के अनुसार, मानसून के दौरान जब चट्टानों में पानी रिसता है और भूमिगत जल स्तर बढ़ता है, तो इससे क्षेत्र की चुंबकीय ऊर्जा (Magnetic Field) में बदलाव आता है।

यह चुंबकीय बदलाव पक्षियों के तंत्रिका तंत्र (Nervous System) को प्रभावित करता है, जिससे वे दिशा भ्रमित हो जाते हैं। इसी भ्रम और असंतुलन की स्थिति में वे असामान्य व्यवहार करते हैं — और तेज़ उड़ान में दीवारों, पेड़ों या घरों से टकराकर अपनी जान गंवा बैठते हैं।

पर्यावरणविदों की चेतावनी

पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि मानव जनित गलती है।

जटिंगा गांव में जलने वाली रोशनी पक्षियों को भ्रमित करती है।

जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों की आदतों में बदलाव आ रहा है।

यदि रोशनी नियंत्रित की जाए और लोगों को जागरूक किया जाए, तो इन पक्षियों की जान बचाई जा सकती है।

जटिंगा पर्यटन स्थल के रूप में

अब यह जटिंगा गांव एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। हर साल हजारों लोग यहाँ आते हैं, खासकर पक्षी प्रेमी, शोधकर्ता और डॉक्युमेंट्री फिल्ममेकर। असम सरकार ने भी इसे Eco-Tourism Zone घोषित किया है।

जटिंगा गांव : पर्यटकों के लिए सुविधाएं:

पक्षी देखने के लिए विशेष प्लेटफॉर्म

गाइडेड टूर

लोकल हैंडीक्राफ्ट की दुकानें

गाँव के होमस्टे में ठहरने की सुविधा

पक्षी संरक्षण अभियान

जटिंगा गांव

अब कई NGOs और वन विभाग मिलकर पक्षी संरक्षण के लिए अभियान चला रहे हैं। बच्चों और ग्रामीणों को पक्षियों के महत्व और उनके जीवन की कीमत के बारे में बताया जाता है।

जटिंगा गांव में रोशनी को नियंत्रित किया जाता है।

मारने की बजाय पक्षियों को बचाकर वन विभाग को सौंपा जाता है।

कुछ घायल पक्षियों का इलाज भी किया जाता है।


जटिंगा गांव का रहस्य जितना अद्भुत है, उतना ही गंभीर भी। यह घटना हमें प्रकृति, पक्षियों और हमारे व्यवहार के बीच संबंधों को समझने की चेतावनी देती है। अंधविश्वास से बाहर निकलकर अगर हम वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण अपनाएं, तो हर साल सैकड़ों पक्षियों की जान बच सकती है।

ऐसी ही और ताज़ा और भरोसेमंद खबरों के लिए — हमसे जुड़े रहिए।

अमरनाथ यात्रा 2025- शुरू हो रही है, इन ज़रूरी बातों का रखें ध्यान

Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

Leave a Comment