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1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : बांग्लादेश की वो औरतें जिन्हें इतिहास ने छुपा लिया

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1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : बांग्लादेश युद्ध में हजारों महिलाओं के साथ हुए बलात्कार की सच्ची कहानियाँ – जानें ‘बिरंगोना’ की पीड़ा, समाज का रवैया और उनका संघर्ष।”

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता

प्रस्तावना: जब युद्ध औरत की देह से लड़ा गया

1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम केवल गोलियों, तोपों और सीमा रेखाओं की लड़ाई नहीं थी। यह युद्ध उस दर्द का दूसरा नाम था जहाँ एक औरत की देह को एक राष्ट्र को तोड़ने का हथियार बना दिया गया। पाकिस्तान की सेना और उसके सहयोगी मिलिशिया (राजाकार, अल-बद्र) ने सैंकड़ों गाँवों पर चढ़ाई की और 2 लाख से 4 लाख तक महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए — यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, हर अंक के पीछे एक अधूरी चीख़ छुपी है।


गाँव से अपहरण तक: कब कहाँ कैसे?

खेतों में, घरों में, मदरसों में…

कई महिलाएं सुबह उठीं, खेत पर गईं, कुछ रसोई में रोटी बेल रही थीं… तभी ट्रक की आवाज़ आई। पाकिस्तानी सैनिकों की एक पलटन गाँव पर चढ़ आई। वो चिल्लाते, बंदूक ताने, औरतों को खींचते।

“माँ चिल्लाई थी… मेरी बहन को खींचकर ट्रक में डाला गया। मैं भी वहीं थी… और हम कुछ नहीं कर सके।”
— फरज़ाना बेगम, सर्वाइवर, राजशाही ज़िला

कैसे ट्रकों में लादकर ले जाया गया

औरतों को पकड़कर ट्रकों में लादा जाता। कुछ रोतीं, कुछ बेहोश हो जातीं। किसी के हाथ बंधे होते, किसी के कपड़े फटे हुए। सैनिक हँसते, गालियाँ देते।
5, 10, 20… ऐसे ट्रकों में भरकर ले जाया गया – “rape camps” तक।


बलात्कार शिविर: जहाँ हर दिन मौत से बदतर था

कैम्प कहाँ बनाए गए?

पुराने स्कूल

पुलिस स्टेशन

आर्मी बैरक

कभी-कभी गाँव के ज़मींदारों के मकान

इन कैम्पों में औरतों को लाइन से रखा जाता था। खाने के लिए बचा-खुचा सड़ा हुआ चावल, पीने को गंदा पानी, और हर शाम उन दरिंदों का इंतज़ार।

“हम लाशों की तरह पड़े रहते थे, बस साँसें चल रही थीं। जब सैनिक आते, तो सब थम जाता।”
— मलैका खान, जीवित पीड़िता (साक्षात्कार: द गार्जियन)

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता

सैनिकों का व्यवहार

हर दिन एक नया सैनिक आता, और अपनी ‘बारी’ निभाता। कई महिलाएं 6-6 बार एक ही दिन में रेप की शिकार बनीं। जवान लड़कियाँ, बूढ़ी महिलाएं, यहाँ तक कि 12 साल की बच्चियाँ भी नहीं छोड़ी गईं।


गर्भ, दर्द और कोख की सज़ा

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता :इन यातनाओं से सिर्फ शरीर नहीं, आत्मा भी टूटी। हज़ारों महिलाएं गर्भवती हो गईं। उनमें से अधिकतर के लिए यह गर्भ बलात्कार की निशानी था।

कुछ को सरकारी शिविरों में ज़बरदस्ती गर्भपात कराया गया।

कुछ ने उन बच्चों को जन्म दिया… और समाज से तिरस्कार पाया।

बहुत सी महिलाओं ने आत्महत्या कर ली।

“मैं नहीं चाहती थी उस सैनिक का बच्चा। लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं था। मेरी माँ ने मुझे घर से निकाल दिया।”
— नूरजहां बेगम, पीड़िता (1972)


समाज औरत को क्यों नहीं समझ सका?

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : जिस समाज को इन औरतों का साथ देना था, उसी ने उन्हें “बदचलन”, “बेगैरत”, “अशुद्ध” घोषित कर दिया।

सरकार ने उन्हें ‘बिरंगोना’ (यानी वीरांगना) कहा — लेकिन समाज ने उन्हें सिर्फ बलात्कार-पीड़िता समझा। कई औरतों ने कभी शादी नहीं की, कुछ ने अपना नाम बदल लिया, और बहुत सी आज भी गुमनाम हैं।

“जब मुझे बिरंगोना कहा गया, तो मुझे लगा इज़्ज़त मिली है… लेकिन लोग मुँह मोड़ने लगे।”
— रुबीना खातून, मोंटीबाज़ार से, 1985 में दिया बयान


मानसिक त्रासदी: PTSD और जिंदगी का खालीपन

इन महिलाओं को केवल शारीरिक जख्म नहीं मिले… वो तो समय के साथ भर गए। लेकिन मन के भीतर जो दरार पड़ी — वो आज भी रिस रही है:

रातों को डरकर जाग जाना

पुरुषों के पास जाने से डरना

आत्म-हत्या का विचार

गर्भ के बच्चे को नफरत से देखना


1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : क्या हुआ उनके साथ युद्ध के बाद?

सरकार ने 1972 के बाद कुछ प्रयास किए:

बिरंगोना सम्मान योजना

गर्भपात सहायता

कुछ महिलाओं की शादी की व्यवस्था

लेकिन इन कदमों से जख्म नहीं मिट सके। सच यही है – इनकी लड़ाई युद्ध के बाद शुरू हुई थी।

जब कोख ने खून के आँसू रोए: युद्धजन्य गर्भावस्था

1971 में लाखों महिलाओं के साथ हुए बलात्कार के बाद एक और त्रासदी सामने आई — गर्भावस्था।

यह वो संतानें थीं जो प्यार या परिवार का परिणाम नहीं, बल्कि नफ़रत और आतंक का सबूत थीं।

आंकड़े :

अनुमानित 25,000 से 30,000 बच्चे रेप के परिणामस्वरूप पैदा हुए

इनमें से अधिकतर बच्चों की माताओं ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया

सैंकड़ों बच्चों को चर्च या विदेशी संगठनों द्वारा गोद ले लिया गया


1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : जब माँ ने बच्चे को अपना कहने से मना कर दिया

“वो बच्चा मेरी कोख में था, लेकिन मैं उसे कभी अपना नहीं मान सकी… उसकी आँखें ठीक वैसे ही थीं, जैसे उस पाकिस्तानी सैनिक की।”
— फरज़ाना खातून, पीड़िता

कई महिलाओं ने तो जन्म देने से मना कर दिया, लेकिन जिन्हें मजबूरी में देना पड़ा — उन्होंने भी माँ का दर्जा नहीं स्वीकारा।

गर्भपात अभियान

WHO और डॉ. जियोफ्रे डेविस (ऑस्ट्रेलिया) की टीम ने हज़ारों महिलाओं का गर्भपात कराया

ये प्रक्रिया अक्सर बग़ैर महिला की मानसिक काउंसलिंग के होती थी

जो गर्भ नहीं गिरा सके, उनकी कोख ने वो बच्चे दिए जिन्हें समाज ने कभी अपनाया ही नहीं


उन बच्चों का क्या हुआ?

गोद लेना – लेकिन कहाँ और क्यों?

यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों ने इन बच्चों को गोद लिया

इन्हें “War Babies” कहा गया – युद्ध के दाग़

इन बच्चों को उनके जन्म के बारे में कभी नहीं बताया गया

“मुझे आज भी नहीं पता कि मेरी माँ कौन थी… लेकिन लोग कहते हैं वो बलात्कार की शिकार थी। मेरे वजूद पर खुद मुझे अफ़सोस होता है।”
— रेडिका मोंटेगो, ऑस्ट्रेलिया निवासी, जन्म 1972, ढाका

जिन्हें गोद नहीं लिया गया

बांग्लादेश में रह गए बच्चे तिरस्कार और हिंसा का शिकार हुए

स्कूलों, मोहल्लों में “बदजात” कहा गया

कुछ बच्चों को माँ ने खुद ज़हर देकर मार दिया

कई बच्चे मानसिक बीमारी, आत्महत्या या अवसाद में चले गए


वे औरतें जिन्होंने चुप्पी तोड़ी

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : फर्दौसी प्रियोवर्शिनी (Farida Pervin)

8 महीने तक बंदी रही, रोज़ाना बलात्कार सहा

युद्ध के बाद एक चित्रकार बनीं – हर तस्वीर में उनका दर्द बोलता था

बांग्लादेश सरकार ने उन्हें “राष्ट्रीय नायिका” का दर्जा दिया

लीसा गाज़ी (Leesa Gazi)

उनकी माँ भी रेप की शिकार थीं

“Rising Silence” डॉक्यूमेंट्री में 21 बिरंगोना महिलाओं की कहानी दुनिया के सामने लाई

उन्होंने कहा:

“इन औरतों ने आवाज़ उठाई, लेकिन हमारी चुप्पी ने उन्हें और अकेला कर दिया”


आज के बांग्लादेश में ‘बिरंगोना’ का स्थान

✅ सम्मान?

2015 से बिरंगोना महिलाओं को पेंशन और पहचान पत्र दिए गए

कुछ को सरकारी मकान और पुनर्वास योजनाएं भी मिलीं

लेकिन…

❌ सच्चाई?

समाज आज भी चुप है

बहुत सी महिलाएं आज भी झूठ बोलती हैं कि वे रेप की शिकार नहीं थीं, सिर्फ इसलिए ताकि समाज उन्हें अपनाए

उनके बच्चों को “हिंसा की औलाद” कहकर दूर रखा जाता है


1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता :जब इतिहास ने शर्मिंदा किया

बांग्लादेश की आज़ादी की किताबों में शहीदों का ज़िक्र है, लेकिन बिरंगोना का बहुत कम।

“हर गोली को सलामी मिली, लेकिन हर चीख़ को खामोशी।”
— डॉ. यासमीन हक, लेखक


मानसिक स्वास्थ्य और PTSD

आज, जब दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात हो रही है — इन महिलाओं ने 1971 से PTSD झेला:

Flashbacks

पुरुषों से डर

अपनी ही देह से घृणा

कभी न भरने वाले घाव

बिरंगोना” — जिन्हें इतिहास ने वीरांगना कहा, लेकिन समाज ने नाकारा

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता: बांग्लादेश सरकार ने बलात्कार पीड़ित महिलाओं को “बिरंगोना” (वीरांगना) घोषित किया। ये एक सम्मानसूचक शब्द था, ताकि उन्हें बलात्कार की शिकार नहीं, बल्कि आज़ादी की सिपाही माना जाए।

लेकिन…

समाज का चेहरा कुछ और था:

बिरंगोना को ‘बदचलन’ कहा गया

कईयों को उनके पति, परिवार ने छोड़ दिया

जो शादी हुई, वह भी तलाक में टूटी

बच्चों को स्कूल में “रेप की औलाद” कहा गया

“वीरांगना तो कहा गया, पर किसी ने गले नहीं लगाया।”
— रज़िया बानो, पूर्व पीड़िता


उम्मीद की चिंगारी: जिन्होंने आवाज़ उठाई

1. फर्दौसी प्रियोवर्शिनी (चित्रकार)

उन्होंने अपने बलात्कार के अनुभव को कला में उकेरा

उनकी पेंटिंग्स दर्द का जीवन्त दस्तावेज़ बन गईं

सरकार ने उन्हें “Independence Award” दिया – पर बहुत देर से

“मेरी कोख में जो ज़हर था, मैंने उसे रंग में बदल दिया।”
— फर्दौसी (2017)

2. लीसा गाज़ी की फिल्म – Rising Silence

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता :उन्होंने 2018 में डॉक्यूमेंट्री बनाई: “Rising Silence”

इसमें 7 बिरंगोनाओं की असली आवाज़ें, असली चेहरे

यह फिल्म बर्लिन, लंदन, ढाका में प्रदर्शित हुई

“अगर तुम अपनी माँ से प्यार करते हो, तो किसी और की माँ की चीख़ मत अनसुनी करो।”
— लीसा गाज़ी


साहित्य में दर्द की जगह

काव्य और कहानियाँ:

Tarfia Faizullah की कविता: “Seam”

Jahanara Imam की डायरी: “Ekattorer Dinguli”

Nayanika Mookherjee की किताब: The Spectral Wound

इन लेखनों में सबसे बड़ी बात ये थी कि इन महिलाओं को बलात्कार की शिकार नहीं, बल्कि राजनीतिक टूल की प्रतिरोधक शक्तियाँ दिखाया गया।


🏛️ क्या न्याय मिला?

ट्रायल और सज़ा:

2010 के बाद “International Crimes Tribunal” बना

कई पाकिस्तानी समर्थक मिलिशिया (राजाकार) को फांसी हुई

पर जो पाकिस्तानी सैनिक थे — उन्हें कभी सज़ा नहीं मिली

“जो आदमी मुझे हर रात रौंदता था… वो आज भी पाकिस्तान में ज़िंदा है।”
— गोपन नाम की पीड़िता, 2016


क्या कभी घाव भर सके?

आज भी:

बहुत सी महिलाएं PTSD से जूझ रही हैं

कई अब भी छुपाकर रखती हैं अपनी पहचान

कुछ ने अपनी बेटियों को कभी अपने दर्द के बारे में नहीं बताया

पर कुछ ने… अपने घावों को ताक़त में बदला।

“मेरे बच्चे को मैंने पालपोसकर बड़ा किया, पर कभी नहीं बताया कि वो किसका है। अब वो डॉक्टर है — और मुझे सबसे ज़्यादा प्यार करता है।”
— नाम न बताने की शर्त पर एक बिरंगोना (2023)


स्मृति और सम्मान

ढाका में “BIRANGONA SMRITI SHILPO”

2017 में एक स्मारक स्थापित किया गया

स्त्रियों की एक दीवार, जिसमें चुप्पी है… और आंखें भरी हुई

National Birangona Day?

अब तक कोई आधिकारिक दिन नहीं

लेकिन कुछ सामाजिक संगठन 14 दिसंबर को अनौपचारिक रूप से याद करते हैं


भविष्य की ओर

1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता : इन कहानियों को लिखना आसान नहीं था। लेकिन जरूरी था।

क्यों?

क्योंकि जब हम चुप रहते हैं, तो अपराधी मजबूत होते हैं।

जब हम सुनते हैं, तो पीड़िता पहली बार इंसान बनती है।


A.P.S. JHALA का अंतिम नोट:

“मैं इस लेख को समाप्त नहीं कर रहा, क्योंकि यह कहानी कभी समाप्त नहीं होगी। ये सिर्फ बांग्लादेश की नहीं — हर उस देश की कहानी है जहाँ युद्ध में महिलाओं की देह पर लड़ाई लड़ी जाती है।”

“अगर आपकी मां को कुछ कह दिया जाए, तो आप गुस्से में आग हो जाते हो… फिर सोचिए, उन लाखों बेटियों के लिए हमारी चुप्पी कैसी होगी?”


आइए मिलकर करें:

इन कहानियों को साझा करें 1971 बांग्लादेश रेप पीड़िता
इतिहास में इनका नाम दर्ज़ करें
‘बिरंगोना’ शब्द को इज्ज़त दें, तिरस्कार नहीं
और हर युद्ध से पूछें — क्यों हमेशा औरतें ही निशाना होती हैं?


समाप्त।

यदि आप चाहें, तो इस पूरी तीन भागों की कहानी को एक ईबुक, PDF या वेबसाइट फ़ॉर्मेट में भी तैयार कर सकता हूँ।
क्या आप चाहेंगे कि इसे “1971: वीरता और वेदना” शीर्षक से संग्रहित किया जाए?


“ये लेख एक श्रद्धांजलि है उन आवाज़ों को जो इतिहास की स्याही में डूब गईं… ये सिर्फ आँकड़े नहीं, ये आपकी, मेरी, हमारी बहनों की सच्चाई है। अगर ये पढ़ते हुए आपकी आँखें नम नहीं होतीं, तो सोचिए – हम इंसान हैं या आंकड़ों के पुर्जे?”

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चर्खी दादरी विमान हादसा – आसमान में टकराई दो तकदीरें

Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

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