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श्मशान घाट उद्घाटन विवाद: बारिश में खुले में हुआ युवक का अंतिम संस्कार – इंसानियत पर सवाल”

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श्मशान घाट उद्घाटन विवाद: मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के नानकपुर गांव में एक युवक का अंतिम संस्कार बारिश में खुले आसमान के नीचे इसलिए करना पड़ा क्योंकि श्मशान घाट का उद्घाटन नहीं हुआ था। पढ़िए ये इंसानियत को झकझोर देने वाली असली कहानी।

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद


श्रेणी: सामाजिक सच्चाई | स्थान: अशोकनगर, मध्य प्रदेश

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद: जब नियम मानवता पर भारी पड़ जाएं

भारत में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार न केवल एक धार्मिक कर्मकांड होता है, बल्कि यह व्यक्ति को सम्मानपूर्वक विदा देने की अंतिम प्रक्रिया भी है। पर जब किसी मृत व्यक्ति को यह भी नसीब न हो, तो सवाल उठता है — क्या हम अब भी संवेदनशील समाज हैं या केवल नियमों के गुलाम?

मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले से एक ऐसी ही हृदय विदारक घटना सामने आई है, जिसने सरकारी मशीनरी की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है।

घटना का विवरण: पवन कुमार का दर्दनाक अंत

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद : अशोकनगर जिले के चंदेरी क्षेत्र में स्थित नानकपुर गांव में 25 वर्षीय युवक पवन कुमार अहिरवार की दुर्घटना के बाद तबीयत बिगड़ने से अचानक मौत हो गई। परिवार और गांववाले दुख से टूट चुके थे। लेकिन असली पीड़ा तो तब शुरू हुई, जब मृत शरीर को लेकर लोग गांव के नए श्मशान घाट पहुंचे।

वहां मौजूद पंचायत सचिव सविता रजक ने परिजनों को अंतिम संस्कार करने से रोक दिया। कारण?
“श्मशान घाट का उद्घाटन अभी नहीं हुआ है, इसलिए वहां किसी का अंतिम संस्कार नहीं हो सकता।”

उस समय पूरा क्षेत्र भारी बारिश की चपेट में था, लेकिन मजबूर परिजनों को खुले आसमान के नीचे ही अंतिम संस्कार करना पड़ा।

श्मशान घाट में अनुमति न मिलने के कारण परिवार और गांववालों ने पास के एक खुले मैदान में अस्थायी अंतिम संस्कार की व्यवस्था की। बारिश लगातार हो रही थी, इसलिए लोहे की टीन और लकड़ियों से एक ढांचा खड़ा किया गया। कुछ लोग टीन को हाथ से पकड़े खड़े रहे ताकि शव बारिश में भीग न जाए।चिता जलाना आसान नहीं था—बार-बार डीजल डालकर आग को जलाए रखना पड़ा, क्योंकि भीगती लकड़ियों के कारण चिता की लौ बार-बार बुझ जाती थी। इस पूरी प्रक्रिया में दर्द के साथ-साथ असहायता भी साफ झलक रही थी। यह दृश्य उस इंसानियत की तस्वीर थी जो सरकारी औपचारिकताओं की भीगती परतों के नीचे दब गई थी।

ना लकड़ी मिली, ना सहायता—उद्घाटन ने रोक दी इंसानियत की विदाई

अंतिम संस्कार के इस दर्दनाक दृश्य ने सभी के दिलों में एक ही सवाल छोड़ दिया—क्या अब मरने के बाद भी इंसान को सरकारी उद्घाटन का इंतजार करना पड़ेगा?

परिजनों ने बताया कि उन्होंने पंचायत से अंत्येष्टि सहायता राशि और लकड़ियों की मांग की थी, लेकिन किसी ने उनकी गुहार नहीं सुनी। मदद की जगह उन्हें खामोशी मिली।

गांववालों का कहना है कि श्मशान घाट महीनों पहले ही बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन सिर्फ उद्घाटन न होने की वजह से उसे उपयोग में नहीं लिया जा सका। इस कारण परिवार को मानवता को झकझोर देने वाली स्थिति का सामना करना पड़ा।

प्रशासनिक व्यवस्था की विफलता

सरकार द्वारा बनाए गए श्मशान घाट का काम पूरा हो चुका था। लेकिन सिर्फ इसलिए कि उसका औपचारिक उद्घाटन नहीं हुआ, वहां मृतक का दाह संस्कार करने की अनुमति नहीं दी गई।

क्या श्मशान घाट जैसी जगह के लिए उद्घाटन इतना ज़रूरी है?

क्या प्रशासनिक नियम मृत व्यक्ति की अंतिम गरिमा से ऊपर हो सकते हैं?

यह घटना न केवल सवाल खड़े करती है, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे को असंवेदनशीलता की कटघरे में खड़ा करती है।

इंसानियत के ऊपर औपचारिकता: एक सामाजिक चोट

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद :सोचिए उस परिवार पर क्या बीती होगी, जब उन्हें अपने बेटे का अंतिम संस्कार बारिश में खुले आसमान के नीचे करना पड़ा।
गांववालों की आँखें नम थीं, पर पंचायत सचिव और स्थानीय प्रशासन इस दर्द में भी “प्रोटोकॉल” का हवाला दे रहे थे।

यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति या एक गांव की नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की सोच का प्रतिबिंब है। इंसान मर गया, लेकिन श्मशान घाट तब तक उपयोग नहीं हो सकता जब तक फीता नहीं काटा जाता।

सिस्टम से सवाल: क्या हम संवेदनशील नहीं रहे?

क्या मानवता का सम्मान करने से बड़ा कोई सरकारी नियम हो सकता है?

क्या पंचायत सचिव की यह ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वह स्थिति को समझती और अंतिम संस्कार की अनुमति देती?

क्या प्रशासन को इस मामले में तत्काल संज्ञान नहीं लेना चाहिए?

यह घटना यह भी दर्शाती है कि स्थानीय स्तर पर ज़मीनी प्रशासनिक व्यवस्था कितनी जटिल और संवेदनहीन हो सकती है।

सामाजिक जिम्मेदारी और संभावित समाधान

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद : इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक निर्णय सिर्फ कागज़ी काम तक सीमित नहीं रह सकते। मृत्यु और आपातकाल जैसी परिस्थितियों में लचीलापन और संवेदनशीलता ज़रूरी है।

सुझाव :

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद : हर ग्राम पंचायत को एक आपातकालीन निर्णय समिति बनानी चाहिए।

अंतिम संस्कार जैसे कार्यों के लिए स्थानीय स्तर पर तुरंत उपयोग की अनुमति दी जानी चाहिए, भले उद्घाटन न हुआ हो।

पंचायत सचिव और अधिकारियों को मानवाधिकार एवं संवेदनशीलता की विशेष ट्रेनिंग दी जाए।

एक अंतिम सवाल

श्मशान घाट उद्घाटन विवाद : श्मशान घाट तैयार था। परिवार तैयार था। प्रकृति साथ नहीं थी, फिर भी उन्होंने बेटे को विदा किया।
सिर्फ सरकार तैयार नहीं थी, क्योंकि वहां अभी फीता नहीं कटा था।

क्या यह भारत की 21वीं सदी है? या फिर अब भी हम कागज़ी सत्ता की बेड़ियों में बंधे हैं?

इस सवाल का जवाब आपको और हमें मिलकर प्रशासन से मांगना होगा — ताकि अगला पवन कुमार खुले आसमान के नीचे विदा न हो।

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Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

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