शिशु व्यापार इंडोनेशिया – के गर्भ में बुकिंग और फिर पैदा होते ही तस्करी एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय गिरोह, जो बच्चों की ‘बुकिंग’ माँ के गर्भ में ही कर लेता था
बच्चों की तस्करी
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शिशु व्यापार इंडोनेशिया
नवजातों की तस्करी इंडोनेशिया
इंडोनेशिया से एक दिल दहला देने वाली सच्चाई सामने आई है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय गिरोह, जो बच्चों की ‘बुकिंग’ माँ के गर्भ में ही कर लेता था और फिर जन्म के कुछ ही दिनों बाद उन मासूमों को तस्करी के ज़रिए दूसरे देश में बेच देता था।
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पुलिस ने हाल ही में पोंतियानाक और तांगरांग शहरों में छापेमारी कर इस घिनौने धंधे से जुड़े 13 लोगों को गिरफ्तार किया और 6 बच्चों को बचा लिया, जिन्हें सिंगापुर ले जाया जा रहा था। ये सभी बच्चे महज एक साल की उम्र के थे।
ऐसे होती थी तस्करी की शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी
शिशु व्यापार इंडोनेशिया :- गिरोह सबसे पहले उन महिलाओं को निशाना बनाता था जो या तो आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं या फिर अविवाहित थीं और गर्भवती हो गई थीं। कई मामलों में शुरुआत फेसबुक पर होती थी – एक सिंपल मैसेज, फिर बातचीत धीरे-धीरे व्हाट्सऐप जैसे ऐप्स पर शिफ्ट हो जाती थी।
गिरोह माँ से वादा करता था कि डिलीवरी का पूरा खर्च वही उठाएगा। बदले में उन्हें बच्चे को सौंपना होगा। कुछ मामलों में तो गर्भ में ही सौदा तय हो जाता था – ‘बुकिंग’। बच्चे के जन्म के बाद परिवार को कुछ पैसा देकर नवजात को चुपचाप ले जाया जाता था।
फर्ज़ी दस्तावेज़ों से तैयार किया जाता था ट्रांजिट
इन बच्चों को पहले पोंतियानाक शहर में छिपाकर रखा जाता था। वहां उनके फर्ज़ी जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट और इमिग्रेशन दस्तावेज़ बनाए जाते थे। फिर उन्हें सिंगापुर भेजा जाता था, जहाँ कथित तौर पर उन्हें अवैध रूप से गोद लिया जाता था।
गिरफ्तार लोगों में कुछ की भूमिका सिर्फ माँ को ढूंढने की होती थी, कुछ बच्चों को रखने और खिलाने-पिलाने का इंतज़ाम करते थे, और कुछ फर्ज़ी पेपर्स तैयार करने में माहिर थे। बच्चों को दो-तीन महीने तक केयरटेकर के पास रखा जाता और फिर धीरे-धीरे इंटरनेशनल ट्रांजिट की प्रक्रिया शुरू होती।
बच्चे की कीमत 11 लाख से 26 लाख रुपये तक
सिंगापुर में बच्चों की तस्करी
शिशु व्यापार इंडोनेशिया :-पुलिस ने बताया कि बच्चों को 11 लाख से 16 लाख इंडोनेशियाई रुपये (यानी लगभग ₹70,000 से ₹1 लाख तक) में बेचा गया। वहीं कुछ अन्य मामलों में यह कीमत 20 से 26 लाख तक भी पहुंच गई। गिरोह ने अब तक 25 से अधिक बच्चों को सिंगापुर में बेचने की बात कबूल की है – जिनमें 12 लड़के और 13 लड़कियां शामिल हैं।
माँ-बाप ने क्यों बेचे अपने बच्चे?
जांच में सामने आया कि ज्यादातर मामलों में बच्चे माँ-बाप की सहमति से लिए गए थे। कुछ ने आर्थिक मजबूरी में अपने बच्चों को बेचा, जबकि कुछ मामलों में जब दलाल ने वादा किया पैसा नहीं दिया तो माता-पिता ने शिकायत की। अब पुलिस यह जांच कर रही है कि किन मामलों में समझौता हुआ और किसमें जबरदस्ती। अगर समझौते के सबूत मिले तो माँ-बाप पर भी बाल संरक्षण कानून और मानव तस्करी के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
पुलिस का अगला कदम
शिशु व्यापार इंडोनेशिया :- अब पुलिस का फोकस सिंगापुर में उन लोगों तक पहुँचने का है जिन्होंने इन बच्चों को गोद लिया है। अधिकारियों ने बताया कि वे इमिग्रेशन डेटा को क्रॉस-चेक कर रहे हैं – कौन बच्चा कब और किसके साथ गया, उसकी नागरिकता क्या है, और वह अब कहाँ है।
बच्चों के पासपोर्ट को ट्रैक करने की कोशिश की जा रही है और पुलिस अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर गिरोह के बाकी सदस्यों की भी तलाश कर रही है। जिनकी पहचान हो चुकी है, उन्हें वांछित अपराधी घोषित किया जाएगा और रेड नोटिस भी जारी किया जा सकता है।
दिखावे की आड़ में धंधा
शिशु व्यापार इंडोनेशिया :- यह गिरोह अक्सर खुद को मेटरनिटी क्लीनिक, अनाथालय या सामाजिक सहायता केंद्र के रूप में पेश करता था। शुरुआत में महिलाओं को सहानुभूति के शब्दों से लुभाया जाता था — “यहाँ सुरक्षित डिलीवरी की सुविधा है, आप चाहें तो बच्चे को घर भी ले जा सकती हैं।” लेकिन असलियत यह होती थी कि बच्चे को पैसे लेकर किसी और को सौंप दिया जाता था।
आंकड़े चौंकाते हैं
हालांकि देश में बच्चों की तस्करी को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन 2020 से लेकर 2023 तक बच्चों की अवैध गोद लेने की घटनाओं में तेज़ी आई है। 2020 में ऐसे 11 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2023 में यह संख्या बढ़कर 59 तक पहुँच गई।
2024 में भी एक बड़े नेटवर्क का भंडाफोड़ हुआ था जिसमें डेपोक, पश्चिम जावा और बाली जैसे इलाकों में बच्चों की बिक्री की पुष्टि हुई थी। खास बात ये कि बच्चों की कीमत उनके शारीरिक रूप, रंग और स्वास्थ्य के अनुसार तय की जाती थी — एक डरावनी, लेकिन सच्ची हकीकत।
निष्कर्ष:
यह मामला सिर्फ एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह उस वैश्विक अपराध की कहानी है जिसमें मासूम बच्चों को वस्तु की तरह खरीदा और बेचा जा रहा है। पुलिस की कोशिश है कि न सिर्फ गिरोह के सदस्य बल्कि उन तथाकथित ‘गोद लेने वाले’ खरीदारों को भी न्याय के कटघरे में लाया जाए। यह कहानी बताती है कि दुनिया में आज भी इंसानियत को शर्मिंदा करने वाले लोग मौजूद हैं — और उनका सामना ज़रूरी है।
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