शव साधना, तंत्र का सबसे रहस्यमयी और भयावह पहलू है। शव साधना की प्रक्रिया, उद्देश्य, खतरें और इससे जुड़ी रहस्यमयी सच्चाइयों के बारे में विस्तार से।
सनातन परंपरा में ईश्वर की प्राप्ति के लिए भक्त अनेक विधियों से पूजा, साधना और तप करते हैं। इन्हीं मार्गों में एक अत्यंत रहस्यमयी और कठिन मार्ग है — अघोरी साधना। अघोरी साधु जीवन में अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति के लिए तांत्रिक मार्ग अपनाते हैं। यह मार्ग सामान्य नहीं होता, बल्कि इसमें गहन तप, मानसिक नियंत्रण और निर्भय साधना की आवश्यकता होती है। अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया बेहद जटिल और रहस्यमय होती है, इसलिए इस पथ पर आगे बढ़ने से पहले किसी अनुभवी गुरु या तांत्रिक विद्वान से सही मार्गदर्शन लेना आवश्यक होता है।
सनातन धर्म में अघोरी साधुओं की एक अनूठी और अत्यंत रहस्यमयी पहचान है। ये साधु भगवान शिव के घोर तपस्वी रूप के उपासक माने जाते हैं। श्वेताश्वतर उपनिषद में भी अघोर साधना की चर्चा मिलती है। अघोरी साधु का जीवन सामान्य लोगों से एकदम भिन्न होता है – वे सांसारिक नियमों से परे, भैरवनाथ को अपना आराध्य मानकर तंत्र की गहन साधनाएं करते हैं। अघोरी बनने की राह बहुत कठिन होती है, जिसमें साधक को कठोर परीक्षा से गुजरना पड़ता है।
जो साधक इन चुनौतियों को पार नहीं कर पाते, वे अघोरी साधु बनने की अंतिम मंजिल तक नहीं पहुंच पाते। इसी कारण यह मार्ग सबसे कठिन साधना पथों में गिना जाता है। अघोरी अक्सर श्मशानों में विशेष तांत्रिक क्रियाएं जैसे शव-साधना करते हैं, जिनका उद्देश्य आत्मज्ञान और अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होता है।
कई लोगों का मानना है कि अघोरी साधु श्मशान में काला जादू करते हैं, लेकिन इस धारणा को सत्य कहा नहीं जा सकता। दरअसल, श्मशान में साधना करना अघोरियों की आध्यात्मिक साधना का एक अहम हिस्सा होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि अपनी तांत्रिक क्रियाओं के दौरान वे अधजले शवों का सेवन करते हैं, जिसे साधना की एक विशेष प्रक्रिया माना जाता है।
शव साधना क्या है ?
शव साधना, भारतीय तंत्र परंपरा की सबसे रहस्यमयी, गूढ़ और भयावह साधनाओं में से एक है। यह साधना आमतौर पर रात्रि के समय, विशेषकर अमावस्या की रात को श्मशान घाट में की जाती है, जिसमें साधक एक ताजे शव (अक्सर हाल ही में मरे हुए व्यक्ति) पर बैठकर साधना करता है।
यह साधना आत्मिक, तांत्रिक और मानसिक शक्ति की सीमाओं को लांघने के लिए की जाती है। इसके माध्यम से साधक सिद्धियों, भूत-प्रेत नियंत्रण, अपार मानसिक बल और यहां तक कि मृत्यु के भय पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करता है।
अघोरी साधना के दौरान वे मुर्दों को मांस और मदिरा अर्पित करते हैं, जो एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया है और पूरी तरह से गुप्त ढंग से की जाती है। इस साधना का मूल उद्देश्य मृत्यु के अंतिम सत्य को स्वीकार करना और उससे भयमुक्त होकर ईश्वर की अनुभूति पाना होता है। अघोरी मानते हैं कि श्मशान ही वह स्थान है जहाँ जीवन और मृत्यु के बीच की सीमा मिट जाती है — और यहीं से मोक्ष का मार्ग खुलता है।
तंत्र साधना में शव की भूमिका :-
तंत्र विद्या में शरीर, आत्मा और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के गहरे संबंध को माना जाता है। ताजे शव को ऊर्जा का माध्यम माना जाता है, जो संसार और परलोक के बीच एक “दरवाज़ा” बन जाता है।
शव तीन स्तरों की शक्ति का प्रतीक है:
भौतिक शक्ति: मांस और हड्डियों की ऊर्जा
सूक्ष्म शक्ति: आत्मा से निकलती शुद्ध शक्ति
तांत्रिक शक्ति: ब्रह्मांडीय ऊर्जा से संवाद की क्षमता
शव साधना की उत्पत्ति और इतिहास :-
शव साधना का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जैसे:
कौलाचार तंत्र
भैरव तंत्र
कालिका पुराण
मंत्र महोदधि
भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों और तांत्रिकों ने यह स्वीकारा है कि कुछ साधनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें केवल अति-गूढ़ और साहसी व्यक्ति ही कर सकता है।
अघोरी और शव साधना का संबंध :-
अघोरी साधु शव साधना के सबसे प्रसिद्ध साधक माने जाते हैं। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट और हर की पौड़ी जैसे स्थानों पर अघोरी आज भी इस साधना को करते पाए जाते हैं।
अघोरी क्यों करते हैं शव साधना?
मृत्यु के भय से मुक्त होने के लिए
भौतिक जगत से परे जाने के लिए
ब्रह्मांडीय चेतना से संपर्क के लिए
माया से मुक्ति और मोक्ष के लिए
श्मशान को अपना निवास स्थान बनाने वाले अघोरी साधु वही बन पाते हैं, जो सांसारिक आकर्षणों और भावनात्मक बंधनों को पूरी तरह त्याग चुके होते हैं। अघोरी जीवन का मार्ग अत्यंत कठिन होता है, जिसमें मोह-माया, लालच और मृत्यु का भय कोई स्थान नहीं रखते। ऐसा माना जाता है कि श्मशान में की गई साधना अधिक प्रभावशाली और शीघ्र फलदायी होती है, इसलिए अघोरी साधु अक्सर श्मशान भूमि में ही साधना करते हैं। अघोरी पंथ केवल उसी साधक को स्वीकार करता है, जो जीवन और मृत्यु दोनों को समान भाव से देखता है और आत्मिक शक्ति की खोज में एकाग्र रहता है।
शव साधना की तैयारी :-
शव साधना कोई सामान्य साधना नहीं है। इसके लिए साधक को महीनों की तैयारी करनी पड़ती है। मुख्यतः:
1. मांसाहार त्यागना या सीमित करना
2. ब्रह्मचर्य का पालन
3. मंत्र जाप की निरंतर साधना
4. मनोबल और डर पर नियंत्रण
5. शव की प्राप्ति की योजना
6. गुरु की अनुमति व मार्गदर्शन आवश्यक
शव साधना की प्रक्रिया :-
शव साधना की प्रक्रिया अत्यंत गोपनीय और जटिल होती है:
स्थान: श्मशान घाट
एकांत जंगल
गुफाएं
समय :-
अमावस्या की रात
पूर्णिमा की रात (कुछ परंपराओं में)
रात 12 बजे से 3 बजे के बीच
मुख्य चरण :-
1. शव को स्वच्छ कर, विशेष आसन पर रखा जाता है
2. साधक शव पर बैठता है या शव के ऊपर झुक कर साधना करता है
3. गुप्त मंत्रों का जाप करता है – अक्सर ‘भैरव’ या ‘काली’ से जुड़े मंत्र
4. प्रेतात्माएं, पिशाचिनी और अन्य तत्वों से सामना होता है
5. शरीर कांपने लगता है, भयावह दर्शन होते हैं
6. कुछ घंटे या कभी-कभी पूरी रात तक साधना चलती है
7. अंत में, साधक को शक्ति या दर्शन मिलते हैं
साधना के दौरान होने वाले अनुभव :-
शव साधना के दौरान कई साधकों ने निम्न अनुभवों का वर्णन किया है:
शव का हिलना या आंखें खुलना
रहस्यमयी आवाजें, रुदन या हंसी
किसी महिला आकृति का प्रकट होना
डरावने सपने या मानसिक भ्रम
शरीर से आत्मा का बाहर निकलना
देवी या भैरव के दर्शन होना
इस साधना के उद्देश्य क्या होते हैं ?
1. भूत-प्रेत पर नियंत्रण
2. मृत्यु से परे शक्ति प्राप्त करना
3. तांत्रिक सिद्धियां – जैसे ‘वासना नियंत्रण’, ‘मोहिनी विद्या’
4. भविष्य जानना और इच्छा पूर्ति
5. दुश्मन को परास्त करने के उपाय (मारण, उच्चाटन)
6. मोक्ष की प्राप्ति (कुछ परंपराओं में)
शव साधना के लाभ और खतरे :-
लाभ :
असीम मानसिक बल
प्रेतात्माओं से संपर्क
तंत्र में सिद्धि
आत्मिक अनुभव
खतरे :
मानसिक विकृति
स्थायी डर और भ्रम
प्रेत आत्मा का वश में न आना
शारीरिक रोग
समाज और कानून से विरोध
क्या शव साधना कानूनी है ?
भारत में शव साधना पूरी तरह अवैध है।
IPC की कई धाराएं जैसे:
धारा 297: शव के साथ छेड़छाड़
धारा 295A: धार्मिक भावनाएं आहत करना
धारा 377, 201: शव का अपमान, अवैध उपयोग
इन धाराओं के तहत साधक को जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
शव साधना की वैज्ञानिक व्याख्या :-
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शव साधना को:
मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा
हॉल्युसीनेशन (भ्रम)
डार्क सबकॉन्शियस प्रोग्रामिंग
एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल का असंतुलन
के रूप में देखा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अत्यधिक तनाव और डर की स्थिति में मस्तिष्क अवास्तविक दृश्य उत्पन्न करता है।
शव साधना से जुड़ी सच्ची घटनाएं :-
घटना 1: वाराणसी, 2017
अमरनाथ नामक अघोरी एक शव पर बैठकर तंत्र साधना कर रहा था। साधना के दौरान अचानक शव हिलने लगा और चीख सुनाई दी। पुलिस पहुंची और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। शव में कोई जान नहीं थी – पर घटनास्थल पर डर का माहौल बन गया।
घटना 2: उज्जैन, 2004
महाकाल मंदिर के पीछे के श्मशान में एक तांत्रिक ने युवती की बलि देकर शव साधना की कोशिश की। बाद में आत्मा प्रकट होने और कई मौतों की खबरें सामने आईं।
समाज और धर्म में शव साधना की स्थिति :-
हिंदू धर्म में शव को पवित्र माना जाता है, लेकिन उसका प्रयोग केवल अंतिम संस्कार तक सीमित है। शव साधना जैसे क्रियाकलापों को:
धार्मिक रूप से अपवित्र और वर्जित
सामाजिक रूप से भयावह और अपराध
आध्यात्मिक रूप से पतन का मार्ग
माना जाता है।
तंत्र का खतरनाक किनारा :-
शव साधना एक ऐसा मार्ग है जो आपको ब्रह्मांडीय रहस्यों के द्वार तक पहुंचा सकता है – या आपको मानसिक अंधकार में डुबो सकता है। यह साधना केवल अनुभवी, पूर्ण गुरु मार्गदर्शन और मानसिक संतुलन वाले साधकों के लिए है।
अगर आप सिर्फ रोमांच के लिए शव साधना की ओर झुक रहे हैं, तो यह रास्ता आपको गहरे संकट में डाल सकता है।
अंधविश्वास की जड़ें :-
प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास इस कदर हावी है कि गरियाबंद में लोग अब मुर्दे ज़िंदा करने की कोशिश कर रहे हैं। टोनही के नाम पर हत्याएं तो होती ही थीं, अब शव साधना के नाम पर कब्रें खोदी जा रही हैं। बीते तीन महीनों में एक युवती और एक महिला की कब्र खोदकर तांत्रिक क्रियाएं की गईं, ताकि मुर्दे को जागाकर उसे वश में किया जा सके
छुरा के सिवनी गांव में हाल ही में दो लोगों को कब्र खोदकर जादू-टोना करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले जून में भी फिंगेश्वर ब्लॉक में ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां युवती का शव निकालकर तंत्र-मंत्र किया गया था। जानकारी के मुताबिक, सिवनी गांव में मृतका सुरेती विश्वकर्मा को मुक्तिधाम में दफनाया गया था, जिसकी कब्र से छेड़छाड़ की गई।
कब्र से निकाली पत्नी की लाश, फिर किया तंत्र साधना – गरियाबंद में अंधविश्वास की चौंकाने वाली घटना!
पत्नी की कब्र से छेड़छाड़ होते देख लोगों को हुआ शक और मामला सामने आ गया। परिजनों को जब सूचना मिली कि कब्र के पास कुछ गड़बड़ी हुई है, तो वे तुरंत मौके पर पहुंचे। वहां देखा गया कि मिट्टी हटाकर फिर से कब्र को ढका गया था।
जांच के दौरान मोहल्ले के दो लोगों—नंदे यादव (49) और जागेश्वर गोंड़ (50)—के नाम सामने आए। परिजन ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद दोनों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई। पूछताछ में उन्होंने कबूल किया कि शव को बाहर निकालकर तंत्र क्रिया की और फिर उसे दोबारा दफना दिया। उनका दावा था कि यह सब “जागृति” के उद्देश्य से किया गया।
YouTube से सीखी शव साधना, कब्र से निकाला शव – पसौदा में तंत्र-मंत्र के शक में सनसनी!
इसी साल जून में फिंगेश्वर ब्लॉक के पसौदा गांव में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया था। यहां 25 साल की युवती की सिकलिन बीमारी से मौत होने के बाद उसे गांव के मुक्तिधाम में दफनाया गया था। लेकिन करीब दो महीने बाद उसका धड़ घर के पीछे बाड़ी में पड़ा मिला, जबकि सिर और दोनों हाथ गायब थे। आसपास नींबू और सिंदूर फैला हुआ था, जिससे लोगों को तंत्र-मंत्र की आशंका हुई।
जांच में सामने आया कि दो आरोपियों ने यू-ट्यूब से शव साधना सीखकर यह हरकत की थी। दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
बिलासपुर में भी जलती चिता के किनारे साधना
बिलासपुर में भी हाल ही में शव साधना का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। महीने की शुरुआत में सिरगिट्टी श्मशान घाट का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दो तांत्रिक एक महिला के साथ काले कपड़ों में चिता के पास तांत्रिक क्रिया करते नजर आए। जब कुछ लोग अंदर पहुंचे, तो तांत्रिक क्रिया चल ही रही थी। लोगों ने गुस्से में आकर डंडों से पिटाई कर दी, तब जाकर वे रुके। पूछताछ में तांत्रिकों ने दावा किया कि वे ब्लड कैंसर ठीक करने के लिए साधना कर रहे थे। मामला आधी रात का होने के कारण पुलिस भी उलझन में पड़ गई।
अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि तंत्र-मंत्र के नाम पर किसी शव से छेड़छाड़ करना गलत और गैरकानूनी है। इससे कोई फायदा नहीं होता, उल्टा जेल जाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि कई मामलों में ऐसे लोग मानसिक रूप से असंतुलित हो चुके हैं, क्योंकि वे अपनी बनाई काल्पनिक दुनिया में जीते हैं। समस्याओं का हल तंत्र-मंत्र में नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और व्यवहारिक तरीकों में है।
लेखक का निजी दृष्टिकोण – A.P.S JHALA
मैंने इस विषय पर कई किताबें पढ़ीं, तांत्रिकों से बात की और घटनाओं को समझा है। मेरी राय में शव साधना तंत्र विद्या का सबसे डरावना और शक्तिशाली पहलू है। लेकिन यह एक ‘शॉर्टकट’ नहीं, बल्कि अत्यधिक समर्पण और समझदारी का मार्ग है। मैं पाठकों को सलाह दूंगा कि बिना गहन प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और उद्देश्य के इस मार्ग को छूने की भी ना सोचें।
अंतिम शब्द:
“शव पर बैठकर साधना करने वाले को ईश्वर का दर्शन हो सकता है… या पागलखाने की सलाखें।
तंत्र का यह द्वार जितना खोलना आसान लगता है, उतना ही खतरनाक है।”
अस्वीकरण: इस लेख में प्रस्तुत जानकारी, मान्यताएं, और कथाएं केवल सामान्य जन-रुचि एवं जानकारी के उद्देश्य से साझा की गई हैं। Kahani Nights इस लेख में वर्णित किसी भी तांत्रिक प्रक्रिया, साधना विधि या विश्वास का समर्थन नहीं करता है। इसमें दी गई जानकारियां विभिन्न लोककथाओं, धर्मग्रंथों, पौराणिक स्रोतों और जनमान्यताओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे किसी अंतिम सत्य के रूप में न लें और अपने विवेक का प्रयोग करें। Kahani Nights अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है।
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