मराठी बनाम हिंदी – राज ठाकरे और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के बीच जुबानी जंग ने मुंबई में हिंदी बनाम मराठी की बहस को फिर से उग्र बना दिया है। जानिए पूरा विवाद।
“दुबे तुम मुंबई में आ जाओ, समंदर में डुबो-डुबो के मारेंगे!”
ये कोई फिल्मी डायलॉग नहीं, ये धमाका किया है राज ठाकरे ने — महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (MNS) के प्रमुख ने।
और ये ललकार सीधी है भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के लिए।
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भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के “पटक-पटक कर मारेंगे” वाले बयान पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। राज ठाकरे ने निशिकांत दुबे को सीधा चेतावनी देते हुए कहा कि “मुंबई आओ, समुंदर में डुबो-डुबो कर मारूंगा।”इस पर पलटवार करते हुए निशिकांत दुबे ने राज ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि “तुम्हें हिंदी सिखानी पड़ेगी।”यह विवाद अब केवल शब्दों की लड़ाई नहीं रह गया है, बल्कि यह भाषा, पहचान और क्षेत्रीय अस्मिता का बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है, जो महाराष्ट्र की राजनीति में नई आग भड़का सकता है।
मराठी बनाम हिंदी शुरू कहां से हुआ?
29 जून को मुंबई के पास मीरा रोड में एक मिठाई की दुकान पर एक दुकानदार को इसलिए मारा गया, क्योंकि वो हिंदी में बात कर रहा था।
बात इतनी बढ़ी कि मिठाई से खून की गंध तक पहुंच गई। दुकानदार ने कहा — “यहां तो हिंदी चलती है…”
बस इतना कह देना भारी पड़ गया। MNS के कार्यकर्ताओं ने उसे पीट दिया।
🔊 राज ठाकरे बोले – “कान के नीचे मारना जरूरी है”
राज ठाकरे इस घटना के बाद मीरा रोड पहुंचे और वहां अपने कार्यकर्ताओं का सीधा समर्थन किया।
उन्होंने कहा —
> “अगर किसी के कान में मराठी नहीं घुसती तो कान के नीचे बजाना जरूरी है।”
“अगर तुम्हें महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी सीखनी पड़ेगी।”
“मिठाई वाला बदतमीजी कर रहा था, उसे मारना पड़ा — और सही किया।”
राज ठाकरे यहीं नहीं रुके। उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और बीजेपी सरकार पर भी हमला बोला:
“देवेंद्र फडणवीस अगर आत्महत्या करना चाहते हैं तो करें, लेकिन हिंदी के लिए मराठी की बली नहीं देंगे।”
“हिंदी बोलना बंद करो, ये हमारी मातृभाषा नहीं है। मैं हिंदी बहुत अच्छी बोलता हूं, पर बोलूंगा नहीं।”
और फिर आया धमाका — निशिकांत दुबे पर सीधा हमला
भाजपा के झारखंड से सांसद निशिकांत दुबे ने इस घटना पर बयान देते हुए कहा:
> “हिंदी भाषियों को मारना है, तो उर्दू वालों को मार कर दिखाओ।”
“तुम कौन सा टैक्स देते हो? हमारी खदानों के पैसों पर पलते हो।”
“टाटा, बिरला, रिलायंस — सबने फैक्ट्रियाँ बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ में खोलीं। तुम्हारे पास क्या है?”
यही बयान राज ठाकरे को चुभ गया — और उन्होंने कर दिया सबसे तीखा हमला:
“दुबे! तुम मुंबई में आ जाओ — समंदर में डुबो-डुबो के मारेंगे।”
ये झगड़ा सिर्फ भाषा का नहीं, पहचान का है
राज ठाकरे की नाराजगी भाषा से कहीं ज्यादा गहरी है।
ये मराठी अस्मिता बनाम “उत्तर भारतीय बाढ़” का पुराना दर्द है, जो अब फिर से उठ खड़ा हुआ है।
वो कहते हैं –
> “हिंदी देश की भाषा थोपी गई है। हिंदी ने 250 भाषाओं को मार दिया है। हनुमान चालीसा भी हिंदी नहीं, अवधी में है।”
“महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी सीखनी ही होगी, वरना दंड मिलेगा।”
राजनीतिक बम – मुंबई को गुजरात में मिलाने का सपना?
राज ठाकरे ने एक और बड़ा आरोप लगाया:
> “हिंदी सिर्फ एक शुरुआत है, असली मंशा है मुंबई को गुजरात में मिलाने की।”
ये बयान उनकी चिंता को दिखाता है — उन्हें लगता है कि बीजेपी हिंदी के नाम पर मराठी पहचान को मिटाना चाहती है।
सवाल बहुत हैं… जवाब कौन देगा?
क्या राज ठाकरे की भाषा की लड़ाई मराठी हितों की रक्षा है या चुनावी राजनीति?
क्या निशिकांत दुबे की चुनौती सही है या सिर्फ एक और हिंदी बनाम मराठी का एजेंडा?
और सबसे बड़ा सवाल — मुंबई क्या अब भाषा के नाम पर फिर से जलेगी?
निष्कर्ष
यह विवाद सिर्फ दो नेताओं का नहीं है।
यह भाषा, पहचान, राजनीति और प्रभुत्व की लड़ाई है।
जहां एक तरफ मराठी स्वाभिमान है, तो दूसरी तरफ हिंदी भाषी आत्मसम्मान।
अब देखना यह है कि हिंदुस्तान की आर्थिक राजधानी मुंबई, भाषाओं की इस लड़ाई में किस तरफ झुकेगी…
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