बुराड़ी हत्याकांड में 11 सदस्यों की रहस्यमय मौतें जो भारत के सबसे भयानक सामूहिक आत्महत्या केस में से एक हैं। पढ़िए घटना की पूरी डिटेल, डायरी का रहस्य, और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
बुराड़ी हत्याकांड: दिल्ली का सबसे रहस्यमय और भयानक केस
1 जुलाई 2018 को दिल्ली के संत नगर, बुराड़ी इलाके में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। एक ही परिवार के 11 सदस्यों की मौतें, जो सामूहिक आत्महत्या के अंदाज़ में हुईं, जिसे बुराड़ी हत्याकांड कहा गया लेकिन इसके पीछे की कहानी किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं थी।
इस ब्लॉग पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे कि बुराड़ी हत्याकांड कैसे हुआ, क्या मिला मौके पर, डायरी में क्या लिखा था, और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस घटना की व्याख्या।
बुराड़ी हत्याकांड की घटना: क्या हुआ था उस दिन?
बुराड़ी के चुण्डावत परिवार के 11 सदस्य 1 जुलाई 2018 की सुबह मृत मिले। 10 सदस्यों को एक कमरे में फांसी पर लटका पाया गया, जबकि 1 बुजुर्ग महिला ज़मीन पर गला घोंटकर मरी हुई थी।
पुलिस के मुताबिक, सभी के हाथ और पैर बंधे थे और आंखों पर पट्टियाँ थीं। पूरे घर में एक अजीब सी सन्नाटा और डर का माहौल था।
पड़ोसियों ने बताया कि उस दिन दुकानें भी बंद थीं और कोई बाहर नहीं निकला था।
मौके पर पुलिस को क्या मिला?
पुलिस ने जांच के दौरान घर से 11 सालों की डायरी बरामद की।
डायरी के रहस्य:
डायरी में परिवार के मुखिया ललित भाटिया के पिता की आत्मा से संवाद के निर्देश थे।
लिखा था कि “बाबा” परिवार को आदेश देते हैं कि कैसे पूजा करनी है और कैसे अनुष्ठान करना है।
11 पाइप जो घर की दीवार से बाहर निकले थे, उनका मकसद आत्माओं के लिए रास्ता बनाना था।
यह सारी जानकारी यह दर्शाती है कि मौतें अचानक नहीं हुईं, बल्कि परिवार के भीतर एक लंबे समय से चल रही मानसिक स्थिति का परिणाम थीं।
परिवार और मानसिक स्थिति: क्या था असली कारण?
चुण्डावत परिवार हरियाणा से दिल्ली आया था और सामान्य जीवन जी रहा था।
परिवार के मुखिया ललित भाटिया को यकीन था कि उसके मृत पिता की आत्मा उसके शरीर में प्रवेश करती है और वह उनके माध्यम से परिवार को निर्देश देता है।
इस विश्वास ने पूरे परिवार को प्रभावित किया और उन्हें एक सामूहिक मानसिक भ्रम (shared psychosis) में बांध दिया।
मनोवैज्ञानिक विश्लेषण:
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला शेयरड साइकोसिस या folie à famille का典अच्छा उदाहरण है।
मानसिक दबाव और आस्था ने परिवार को एक घातक दिशा में ले जाया।
“तीन साल तक चली बुराड़ी हत्याकांड की जांच के बाद भले ही पुलिस ने इस केस को बंद कर दिया हो, लेकिन बुराड़ी की गलियों और खासतौर पर चुंडावत परिवार के मकान के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए यह रहस्य आज भी अनसुलझा है।”
मौतों का दिन और अनुष्ठान
ललित ने शुरू किया था एक अजीब अनुसंधान
चुंडावत परिवार के इस रहस्यमयी हादसे के पीछे ललित की सोच सबसे आगे थी। बताया जाता है कि ललित ने परिवार के सभी सदस्यों को एक तरह के आध्यात्मिक अनुसंधान या प्रयोग के लिए तैयार किया था। 30 जून 2018 की उस काली रात से पहले करीब 6 दिनों तक सभी ने एक जैसे तरीके से खुद को फांसी पर लटकाने की ‘प्रैक्टिस’ भी की थी। हैरानी की बात ये है कि इन अभ्यासों के दौरान सभी के हाथ खुले रहते थे। लेकिन जिस रात असली घटना घटी, उस रात सिर्फ ललित और उसकी पत्नी टीना के हाथ खुले पाए गए—बाकी सभी के हाथ बंधे हुए थे। यह बात पूरे मामले को और भी रहस्यमय बना देती है।
डायरी के अनुसार, 30 जून की रात परिवार ने अंतिम अनुष्ठान किया, जिसमें सभी ने आंखों पर पट्टी बांधकर, हाथ-पैर बंधे फांसी लगाई।
उनका विश्वास था कि “बाबा” उनकी आत्माओं को बचाएंगे। परंतु “बाबा” कभी नहीं आए।
यह सामूहिक मृत्यु एक भयानक त्रासदी के रूप में सामने आई।
खुद लाए थे मौत का सामान
दिल्ली पुलिस की delhi क्राइम ब्रांच द्वारा जुटाए गए सीसीटीवी फुटेज में बुराड़ी हत्याकांड पर एक चौंकाने वाला सच सामने आया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि भाटिया परिवार के सदस्य खुद ही वो सामान खरीदकर ला रहे हैं, जिनका इस्तेमाल बाद में फांसी लगाने में हुआ। फुटेज में ललित की पत्नी टीना और श्वेता को एक दुकान से स्टूल लाते हुए देखा गया, जबकि उनके साथ मौजूद बच्चे बिजली के तार अपने हाथों में पकड़े हुए नजर आए। जांच में यह भी सामने आया कि सभी लोगों ने उन्हीं स्टूल्स पर चढ़कर फांसी लगाई थी। सबके हाथ तारों से बंधे हुए थे और वे छत से कुछ इस तरह लटके हुए थे जैसे किसी पेड़ से झूल रही हों—बिलकुल बरगद की जड़ों की तरह।
जांच में सामने आया कि बुराड़ी हत्याकांड पर एक अन्य सीसीटीवी फुटेज में ललित को पॉलिथीन बैग लेकर आते हुए देखा गया। उस थैले में काली रंग की कोई वस्तु और डॉक्टर टेप साफ नज़र आ रहे थे। हैरानी की बात यह थी कि आमतौर पर ललित या परिवार के किसी सदस्य का खुद जाकर सामान खरीदना बहुत ही कम होता था। लेकिन इस बार ललित खुद टेप जैसी चीज़ लेने के लिए दुकान पर गया था, जो इस घटना को और भी रहस्यमयी बना देता है।
इतना ही नहीं, जांच में यह भी सामने आया कि घटना वाली रात ललित ने पूरे परिवार के लिए बाहर से खाना मंगवाया था। मगर जब डिलीवरी बॉय खाना देकर पैसे लेने पहुंचा, तो ललित ने उसे भुगतान नहीं किया। उसने युवक को पैसे लेने के लिए भूपेंद्र के पास भेज दिया। यह व्यवहार सामान्य नहीं था और यही छोटी-छोटी बातें पूरे मामले को गहराई से सोचने पर मजबूर करती हैं।
पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट में क्या लिखा था?
बुराड़ी हत्याकांड के चर्चित केस में जब दिल्ली पुलिस ने अपनी अंतिम यानी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, तो उसमें साफ कहा गया कि जांच के दौरान किसी भी साजिश या आपराधिक षड्यंत्र के संकेत नहीं मिले। रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरी घटना एक सामूहिक पारिवारिक आत्महत्या ( sucide) का मामला थी, जो आपसी सहमति और मानसिक विश्वास के आधार पर अंजाम दी गई।
गौरतलब है कि शुरूआत में पुलिस ने इस केस को हत्या मानकर जांच शुरू की थी और एफआईआर भी मर्डर के तहत crime दर्ज की गई थी। लेकिन करीब तीन साल तक चलती रही तफ्तीश के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि यह एक सुनियोजित ‘सामूहिक आत्महत्या समझौता’ था, ना कि किसी बाहरी हमले का परिणाम
बुराड़ी हत्याकांड पर बनी डॉक्यूमेंट्री
Netflix ने इस केस पर “House of Secrets: The Burari Deaths” नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनाई।
इस डॉक्यूमेंट्री ने बुराड़ी हत्याकांड घटना के हर पहलू को गहराई से दिखाया, खासकर परिवार के मानसिक और सांस्कृतिक पहलुओं को।
निष्कर्ष: क्या सिखाता है बुराड़ी हत्याकांड?
बुराड़ी केस सिर्फ एक अपराध कहानी नहीं है, यह मानसिक स्वास्थ्य, आस्था और परिवार के बीच की जटिलताओं की कहानी है।
यह हमें याद दिलाता है कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य को समझना और सहायता देना कितना जरूरी है।
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