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डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन: जिसने अपने ही 250 मरीजों को मौत के घाट उतारा

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डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन (1946–2004) एक प्रतिष्ठित डॉक्टर की मासूम शक्ल में ब्रिटेन के इतिहास के सबसे डरावने सीरियल किलरों में से एक बन गए।

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन

एक मानवीय चेहरे के पीछे छिपे भयानक सच का खुलासा 1970-80 के दशक के इंग्लैंड में हुआ। हरोल्ड फ्रेडरिक शिपमैन (1946–2004) एक प्रतिष्ठित डॉक्टर की मासूम शक्ल में ब्रिटेन के इतिहास के सबसे डरावने सीरियल किलरों में से एक बन गए। शुरुआती जांचों और सरकार के आदेश पर चलाए गए आधिकारिक डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन जांच में पाया गया कि उन्होंने करीब 23 वर्षों में 215–260 के लगभग बुजुर्ग मरीजों को मार डाला था। ये हत्या उनके मरीज़ होने के भरोसे को ही चुना गया हुआ अपराध था।

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन : प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन का जन्म 14 जनवरी 1946 को नॉटिंघम के एक मेहनतकश परिवार में हुआ था। बचपन से ही शिपमैन होशियार छात्र थे और चिकित्सा में गहरी रुचि रखते थे, विशेषकर इसलिए क्योंकि उन्होंने किशोरावस्था में देखा था कि उनकी मां कैंसर के दर्द से पीड़ित थीं और निरंतर मॉर्फिन की इंजेक्शन लेती रहीं। यह अनुभव उनके डॉक्टर बनने के सपनों की नींव बना। 1970 में उन्होंने लीड्स यूनिवर्सिटी से मेडिकल डिग्री पूरी की, और जल्द ही लंकाशायर के टॉडमॉरडेन में जनरल प्रैक्टिशनर (GP) का काम संभाला।

हालांकि 1970 के दशक के मध्य में ही शिपमैन की लत का एक अँधेरा पहलू सामने आया। 1975 में पाया गया कि वे पैथेडीन (एक शक्तिशाली दर्दनिवारक) की नकली प्रेसक्रिप्शन लिख रहे थे, जिससे उनकी ड्रग की लत उजागर हुई। उस कारण उन्हें अस्थायी रूप से प्रैक्टिस से हटाना पड़ा और नशा मुक्ति केंद्र में भेजा गया। लेकिन कुछ सालों में ही उन्होंने खुद को सुधार लिया। 1977 में उन्होंने ग्रेटर मैनचेस्टर के हाईड कस्बे में अपना नया क्लीनिक खोला, जहां वे फिर से मरीजों की सेवा करने लगे।

चिकित्सा करियर और विश्वास जीतना

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन हाईड में अपने सौम्य स्वभाव, विनम्र व्यवहार और मरीजों के प्रति लगाव से जल्दी ही लोकप्रिय हो गए। उनके क्लीनिक में 1990 के दशक की शुरुआत तक करीब 3,000 मरीज रजिस्टर हो चुके थे। लोग उन्हें “डॉ॰ शिपमैन” कहकर बुलाने लगे; वो खुद को “फ्रेड” कहते थे और बुज़ुर्गों का ख़ास ध्यान रखते थे। वे अक्सर घर पर दौरे करते, मरीजों की बात ध्यान से सुनते और उनकी देखभाल करते। कोर्ट में गवाहों ने बताया कि हरोल्ड के इलाज के बाद मरीजों ने उन्हें धन्यवाद भी कहा था। इसमें न्यायाधीश फोर्ब्स ने खुद माना कि शिपमैन के हर मरीज ने मासूमियत से उन पर भरोसा किया। इस तरह का भरोसा शिपमैन को मौत के दौर रखने की शक्ति दे गया।

हत्याओं का पैटर्न और तरीका

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन : जहाँ तक समझ में आया, शिपमैन की अधिकांश शिकार बुज़ुर्ग महिलाएँ थीं (अक्सर 60–80 वर्ष के बीच) जो स्वास्थ् में पहले ठीक दिखती थीं। इतिहासकारों और रिपोर्टों के मुताबिक, 1995 से 1998 के बीच उन्हें मरने तक पहुंचाए गए कम से कम 15 महिला मरीज थीं। जांच में सामने आया कि डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन अपनी नशे की डायमॉर्फिन (हीरोइन) की खुराक अपने पीड़ितों को देता था। ये इंजेक्शन इतना घातक होता कि मरीज अक्सर कुछ घंटों में मर जाते।

फिर डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन शातिराना ढंग से नक़ली रिकॉर्डिंग शुरू कर देता था। वह मॉर्फिन की बड़ी मात्रा एक अन्य (मृत या स्वस्थ) मरीज के नाम पर नुस्खे करके इकट्ठी करता था, क्योंकि स्वयं मॉर्फिन रखने का लाइसेंस उसके पास नहीं था। हत्या के बाद वह मृतक के मेडिकल रिकॉर्ड को भी एडिट कर देता था ताकि उस पर पहले से कोई गंभीर बीमारी चल रही हो – इससे मृत्यु प्राकृतिक लगने लगती थी। अंत में वह अंतिम श्रम-पत्र (डैथ सर्टिफिकेट) खुद भर लेता था, और “प्राकृतिक” कारण लिखवा देता था। इस प्रकार उसके क्रूर कृत्यों को डॉक्टर का काम दिखाकर पारदर्शिता से बाहर रखा गया, इसलिए कोई तुरन्त शक़ भी नहीं करता था।

हत्या की तकनीक

इन मौतों को अंजाम देने में डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन को विषाक्त इंजेक्शनों के अलावा अपनी पहुंची हुई सरकारी ताबेदार दवाओं का क़ुशल उपयोग दिखा। पुलिस को बाद में पता चला कि उन्होंने मारने के लिए कई वायल (Ampule) स्टोर करके रखे थे। हत्या के तुरंत बाद मरीज के रिकॉर्ड पर ये नोट लिख दिए जाते कि उसने बीमारी के कारण दम तोड़ दिया। इस तरह, बुज़ुर्ग लोग अचानक मर रहे थे और कभी-कभी कोई भी जाँच तक नहीं कराता – क्योंकि उनमें मेडिकल रिकॉर्ड में पहले से बीमारी का इतिहास था। यही संतर्पण उन्हें डॉक्टर डेथ की छवि प्रदान करता गया।

संदिग्ध सुराग और मोड़

जहरीली मौतों का पैटर्न धीरे-धीरे पर्यवेक्षकों के नज़र में आने लगा। मार्च 1998 में फ्यूनरल होम की कर्मचारी डेबोरा मैसी ने देखा कि डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन के मरीजों की असामान्य रूप से अधिक संख्या में मौतें हो रही हैं। कई शवों के कागज़ात पर शिपमैन के ही हस्ताक्षर थे, जो बड़े शक का संकेत था। बाद में अगस्त 1998 में टैक्सी ड्राइवर जॉन शॉ ने पुलिस को बताया कि वह जो वृद्ध महिलाओं को हॉस्पिटल ले जाता था, वे एक के बाद एक डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन से मिलने के बाद ही मर जाती थीं। ये दोनों घटनाएँ अपने आप में खतरनाक थीं, पर मुख्य बिंदु तब आया जब जून 1998 में 81 साल की अमीर विधवा कैथलीन ग्रुंडी की अचानक मृत्यु हुई।

ग्रुंडी केस ने पूरी कहानी का नक़्शा बदल दिया। पुलिस ने पाया कि कैथलीन ग्रुंडी ने अपनी संपत्ति पूरी डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन को छोड़ दी थी – जबकि सामान्यतः बुज़ुर्ग अपने रिश्तेदारों को वारिस बनाते हैं। उसकी बेटी एंजेला ने जब वसीयत की जांच की, तो पाया कि यह वसीयत नक़ली थी और तारीख बाद की दर्शाई गई थी। पुलिस ने शव के रक्त में भी घातक मात्रा में मॉर्फिन पाया, जो मौत के समय असामान्य था। फोरेंसिक लैब ने रिपोर्ट किया कि मामला एक विशिष्ट मॉर्फिन ओवरडोज़ जैसा दिखता है। शिपमैन ने पुलिस से बहस की कि मरने वालों में से उनकी माँ ही शायद नशीली हालत में आकर मर गई, लेकिन जब जांचकर्ताओं ने देखा कि शिपमैन ने क्लिनिक के रिकॉर्ड में मौत के समय के बाद भी नोट दर्ज किए थे, और मेमफ़ाइलों में इलाज की नक़ली प्रविष्टियाँ थीं, तो पूरा मामला सामने आ गया।

इन संकेतों के बाद पुलिस ने जाँच तेज कर दी। उन्होंने डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन के केस को ध्यान से देखा और एक के बाद एक कई शवों का पोस्टमॉर्टम किया। हर केस में शरीर में विषैला मॉर्फिन मिला। इस तरह यह स्पष्ट हो गया कि पिछले बहुत से सालों से कैथलीन ग्रुंडी जैसी अप्राकृतिक मौतें दर्ज हो रही थीं। इसलिए जांचकर्ताओं ने 15 अन्य मामलों में भी हत्या के पर्याप्त सबूत पाए।

जांच प्रक्रिया और निष्कर्ष

इस खुलासे के बाद, जनवरी 2000 में ब्रिटिश सरकार ने डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन के खिलाफ औपचारिक जांच का आदेश दिया (शिपमैन जांच)। फैमिली आफिसर से लेके हेल्थ सेक्रेटरी तक सभी ने केस को गंभीरता से लिया। पुलिस ने मिलाकर लगभग 15 पुष्ट हत्याओं के विरुद्ध सबूत जुटाए, और उन 15 मामलों में शिपमैन को दोषी मान लिया गया। हालांकि अधिकारी समझते थे कि हत्याओं की संख्या इससे कहीं ज्यादा है, लेकिन अदालत में सिर्फ इन 15 के पुख्ता सबूत प्रस्तुत हो सके। बाद में यह जानकारी भी मिली कि क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस को अन्य 23 संदिग्ध मौतों के दस्तावेज़ भी भेजे गए थे, उन पर आगे की कार्रवाई की सम्भावना रखते हुए।

2000 में अंतिम फैसले के साथ अदालत ने साफ़ कहा कि शिपमैन ने शौकिया ढंग से मुठभेड़ नहीं, बल्कि अपने पेशे की आड़ में भीड़ को निशाना बनाया है। वास्तव में अब तक मिली जाँच रिपोर्ट बताती हैं कि शिपमैन की आत्मकथा को लिखने की प्रेरणा हासिल हो चुकी थी और सरकार ने जमकर रिपोर्टें प्रकाशित कीं, जिनमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि डॉक्टरों को ऐसी मौतों की जाँच कराने के नियम बदलने चाहिए।

मुकदमा, सजा और मौत

31 जनवरी 2000 को एक प्रेस्टन अदालत ने डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन को 15 मरीजों की हत्या का दोषी ठहराया। न्यायाधीश जस्टिस फोर्ब्स ने सख्त स्वर में कहा, “तुमने हर मरीज का विश्वास तोड़ा… तुम्हें तुम्हारे बाकी के दिनों के लिए कारावास की सजा दी जाती है”। शिपमैन को 15-15 साल की उम्रकैद सुनाई गई (हर हत्या के लिए एक) और कैथलीन ग्रुंडी की नकली वसीयत बनाने के जुर्म में चार साल अतिरिक्त दिए गए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘लाइफ’ का मतलब यहाँ वास्तव में जिंदगी भर है।

फैसले के बाद क्राउन प्रॉसिक्यूटर रॉबर्ट डेविस ने कहा कि पीड़ित परिवारों ने न्याय का कई सालों तक इंतजार किया और भारी दर्द झेला, लेकिन सब्र बनाए रखा। वहीं, मंचेस्टर के कॉरोनर जॉन पोलार्ड ने घटना के भयावह पैमाने पर ध्यान दिलाया – अगर तीन साल में 130 मौतों में से 100 हत्याएँ हैं, तो 30 साल में वह दोगुने से भी अधिक (लगभग 1000) हो सकती हैं। इससे साफ़ था कि डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन कनवेंट की ईमानदारी का वो चेहरा था, जिस पर कोई शक तक नहीं करता था।

पर डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन को जेल का सलाखों के पीछे मृत्यु वास नहीं मिली। 13 जनवरी 2004 को, अपने 58वें जन्मदिन से ठीक पहले, उसने सेल की सफाई करते हुए फांसी लगा ली। बाद में सामने आया कि शिपमैन ने जेल अधिकारियों को कहा था कि वह आत्महत्या करने की सोच रहा है ताकि उसकी पत्नी को पेंशन का पैसा मिलता रहे। उसका अचानक जाना कई सवालों को हमेशा के लिए चुप कर गया।

मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और मकसद

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन के 250 से अधिक जानलेवा इंजेक्शनों के पीछे असल मकसद कभी पूरी तरह साफ़ नहीं हो सका। जाँचकर्ताओं का मानना था कि उसे नियंत्रण का घमंड था। जैसे कि एक जाँच अधिकारी ने कहा, “उसे नियंत्रण पसंद है… और जीवन-मृत्यु पर सर्वोच्च नियंत्रण का आनंद मिलता था”। ब्रिटानिका भी लिखती है कि संभव है डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन मां के दर्द के लिए गुस्सा था या उसने बुज़ुर्गों को “भार” समझ लिया था, जिन्हें वह ग़लत तरीके से अस्पताल से आज़ाद करके दयाभाव दिखाने लगा। कई विद्वानों ने यह भी कहा कि उसका एक विकृत अहसास था कि वह अपनी दवा से मरीज की जिंदगी ले रहा है – जैसे उसे वो शक्ति मज़बूत करती थी। गौरतलब है कि केवल ग्रुंडी के मामले में ही उसे पैसा मिला; उसके अलावा शिपमैन के लिए पैसों का शौक प्रथम मकसद नहीं था।

जनता की प्रतिक्रिया और मीडिया कवरेज

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन की कहानी ने ब्रिटिश समाज में तुफान मचा दिया। मीडिया ने उसे ‘डॉ॰ डेथ’ की उपाधि दे दी और हर रोज़ उसके मामले की खबरें चलीं। सजा सुनाते हुए जज ने कहा कि शिपमैन ने अपने मरीजों की आस्था का घात किया, और स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि लोगों का डॉक्टरों पर विश्वास अब धराशाई हो गया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि “हमारे यहाँ डॉक्टरों पर अंधविश्वास था” – अब यह मामला समाज को सोचने पर मजबूर कर गया है कि क्या हम अपने डॉक्टरों पर एतबार अंधाधुंध कर सकते हैं।

परिवारों ने इस खुलासे पर संतोष जताया। जज के निर्णय के बाद ज़मीन पर बैठी कई स्त्रियाँ आराम से रोने लगीं। डॉ॰ शिपमैन के खिलाफ केस को दर्ज करने वाली अधिकारी डोरोथी मैसन ने कहा कि पीड़ितों ने लम्बे संघर्ष में भी मानवीय गरिमा रखी। समाचार चैनलों, डॉक्यूमेंट्री निर्माताओं और लेखकों ने इस त्रासदी की गहरी कहानियाँ लुढ़काईं। समाज ने यह महसूस किया कि सबसे भरोसेमंद दिखने वाला शख़्स भी दरिंदा हो सकता है।

दीर्घकालिक प्रभाव और चिकित्सा नियमों में परिवर्तन

डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन कांड ने ब्रिटिश चिकित्सा व्यवस्था में बड़े सुधार लाए। सबसे बड़ा बदलाव मौत प्रमाण-पत्र (डाथ सर्टिफिकेट) प्रणाली में आया। पहले एक डॉक्टर आसानी से मृतक की मौत प्राकृतिक बता सकता था, और रिपोर्ट जनरल रजिस्ट्री में भेज दी जाती थी। शिपमैन ने भी 30 साल तक इस सुविधा का फायदा उठाकर हत्याओं को छुपाया।

अब सितंबर 2024 से इंग्लैंड और वेल्स में हर मौत की स्वतंत्र जाँच अनिवार्य होगी। डॉक्टर अपनी रिपोर्ट भरेगा, लेकिन उसे मेडिकल एग्जामिनर या कोरनर द्वारा सत्यापित करना होगा। इससे मौतों की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी और भविष्य में ऐसी छुपे हुए घातक कृत्यों को रोकना आसान होगा।

इसके अलावा शिपमैन जांच की रिपोर्टों ने भी कई सिफारिशें दीं। जांच की तीसरी रिपोर्ट में मौत प्रमाणपत्र और कोरनर प्रक्रिया की खामियां उजागर की गईं। चौथी रिपोर्ट में नियंत्रित दवाओं (जैसे मॉर्फिन) पर निगरानी कड़ी करने की सलाह दी गई। पाँचवीं रिपोर्ट में जीपी के खिलाफ शिकायतों के निष्पादन और डॉक्टरों के नियमित पुन: जाँच (revalidation) की व्यवस्था पर बल दिया गया। इन सिफारिशों के कारण आज डॉक्टरों को नियंत्रित दवाओं के स्टॉक की डिटेल रखना होता है और मरीजों की मौत पर विस्तृत रिपोर्ट करनी होती है।

राज्य से प्रतिक्रिया में भी सचेत कदम उठाए गए। रोगी सुरक्षा को लेकर नयी नीतियाँ बनाईं गईं, जैसे मेडिकल एग्जामिनर की प्रणाली और मौतों की दोहरी जाँच। 2015 में रॉयल कॉलेज ऑफ पैथोलॉजिस्ट्स की अध्यक्ष ने भी कहा था कि शिपमैन की तरह की घटनाओं के बाद मौत प्रमाणपत्र में सुधार में देरी अब “समझ से परे” हो चुकी है। हालांकि इनमें समय लगा, पर नतीजा यह है कि अब ये नए कानून और नियम देश भर में लागू हो चुके हैं।

इन सभी परिवर्तनों का मकसद स्पष्ट है: भविष्य में ऐसी शैतानी हरकतों को रोकना, डॉक्टरों की जवाबदेही बढ़ाना और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। डॉक्टर हेरोल्ड शिपमैन की गुनाहगार कहानी ने ब्रिटिश समाज को यह सिखाया कि अंधविश्वास पर पुनर्विचार करना जरूरी है, और मौत की जांच और मेडिकल प्रैक्टिस पर सख्ती से निगरानी होनी चाहिए।

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Author

  • A.P.S Jhala

    मैं A.P.S JHALA, "Kahani Nights" का लेखक, हॉरर रिसर्चर और सच्चे अपराध का कहानीकार हूं। मेरा मिशन है लोगों को गहराई से रिसर्च की गई डरावनी और सच्ची घटनाएं बताना — ऐसी कहानियां जो सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं। साथ ही हम इस ब्लॉग पर करंट न्यूज़ भी शेयर करेंगे ताकि आप स्टोरीज के साथ साथ देश विदेश की खबरों के साथ अपडेट रह सके। लेखक की लेखनी में आपको मिलेगा सच और डर का अनोखा मिश्रण। ताकि आप एक रियल हॉरर एक्सपीरियंस पा सकें।

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