गंगा रिवर डॉल्फिन एक अद्वितीय जलीय स्तनपायी है। इसका वैज्ञानिक नाम Platanista gangetica gangetica है। यह भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है, जिसे 18 मई 2009 को घोषित किया गया था

गंगा रिवर डॉल्फिन एक अद्वितीय जलीय स्तनपायी है। इसका वैज्ञानिक नाम Platanista gangetica gangetica है। यह भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है, जिसे 18 मई 2009 को घोषित किया गया था। स्थानीय भाषाओं में इसे ‘सूस’ (बिहार-यूपी) और ‘शिहू’ (असम) के नाम से भी बुलाया जाता है। अंधी होने पर भी इसके संवेदनशील इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि) कौशल के कारण यह गहरे ताजे पानी में सुगमता से शिकार करती है।
गंगा नदी में यह प्रजाति सदियों से मौजूद रही है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण और मानव गतिविधियों के चलते अब यह विलुप्तप्राय हो चुकी है। गंगा नदी की जैवविविधता का प्रमुख अंग होने के नाते इसकी रक्षा करना न सिर्फ एक जैविक दायित्व है, बल्कि गंगा मां की पवित्रता और लाखों आबादी के हित में भी अनिवार्य है।
गंगा रिवर डॉल्फिन : वैज्ञानिक नाम, राष्ट्रीय जलीय जीव, स्थानीय नाम
गंगा रिवर डॉल्फिन (सूंस) का वैज्ञानिक वर्गीकरण Platanista gangetica gangetica (गंगा प्रजाति) है। यह ताजे पानी का स्तनधारी जलचर है, जो मुख्यतः गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों में पाया जाता है। केंद्र सरकार ने इसे 2009 में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया, जिससे इसके संरक्षण पर विशेष ध्यान केंद्रित हुआ। स्थानीय समुदाय में इसे बिहार व उत्तर प्रदेश में ‘सूस’, असम में ‘शिहू’ के नाम से जाना जाता है। (चित्र में गंगा रिवर डॉल्फिन की आकृति देखें।)
अनुमानित संख्या और संकटग्रस्त श्रेणी
गंगा रिवर डॉल्फिन की वर्तमान आबादी बेहद चिंताजनक स्थिति में है। भारत सरकार के पहले समग्र सर्वेक्षण (2021-23) से पता चला है कि देश की नदियों में कुल 6,327 डॉल्फिन हैं, जिनमें 6,324 गंगा-ब्रह्मपुत्र प्रणाली में और केवल 3 सिंधु तंत्र में पाए गए। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में विश्व की लगभग 90% गंगा डॉल्फिन आबादी है। उत्तर प्रदेश (2397), बिहार (2220), पश्चिम बंगाल (815), असम (635) और झारखंड (162) में सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई है। हालांकि, यह संख्या पिछले सौ वर्षों में तेजी से घटती रही है – 20वीं सदी के अंत में यह आबादी चार-पांच हजार के बीच थी, जबकि अब यह भारत में भी 2000 से कम रह गई थी।
IUCN स्थिति: अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने गंगा डॉल्फिन को Endangered (विलुप्तप्राय) घोषित किया है, क्योंकि इसकी संख्या घटती ही जा रही है।
WWF आंकड़ा: WWF-India के अनुसार इस समय गंगा डॉल्फिन की वैश्विक आबादी केवल 1,200–1,800 के बीच रह गई है। यह गिरावट मुख्यतः मानवजनित गतिविधियों के कारण हुई है।

प्रमुख खतरे
गंगा रिवर डॉल्फिन के अस्तित्व पर अनेक खतरों का पहाड़ टूट पड़ा है। प्रमुख खतरों में शामिल हैं:
प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज और कृषि रसायनों से नदी का पानी विषाक्त हो गया है। बढ़ते रासायनिक प्रदूषण ने डॉल्फिन के संवेदनशील तंत्र को प्रभावित किया है।
अवैध मछली पकड़ना: मछुआरे डॉल्फिन को उसके तेल के लिए लक्ष्य बनाते हैं, या फिर जालों में फंस जाने से यह अनजाने में भी मर जाती है। इसके अलावा नदी में जैव विविधता घटने से शिकार भी मुश्किल होता जा रहा है।
जल यातायात: तेज नौकायन व अन्य जलयान डॉल्फिन के इकोलोकेशन को बाधित करते हैं और टकराव का खतरा बढ़ाते हैं। बढ़ती नावों की गति व शोरगुल डॉल्फिन की आवाजाही को बिगाड़ रहा है।
बांध/पुल निर्माण: नदी में बने बांध और तटबंधों ने गंगा को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दिया है। इससे डॉल्फिन के आवास सिकुड़ गए हैं और प्रवाह बाधित हुआ है, जिससे उसकी प्रजनन-भूमि प्रभावित हो रही है।
अन्य कारक: जल का अवैध दोहन, रेत उत्खनन, प्लास्टिक व रसायनिक दहन से जैविक अवशोषण बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन के कारण पानी का प्रवाह बदलने से भी डॉल्फिन संकट में है।
इन सभी कारकों ने मिलकर गंगा डॉल्फिन की आबादी पर भयानक संकट ला रखा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह जलचर प्रजाति गंगा की पारिस्थितिकी स्वास्थ्य का सूचक है – इसका संकट गंगा नदी के समग्र संकट का द्योतक है।
संरक्षण प्रयास
गंगा रिवर डॉल्फिन की रक्षा के लिए सरकार और एनजीओ स्तर पर कई योजनाएं लागू की जा रही हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
नमामि गंगे मिशन: 2014 में शुरू किया गया यह एकीकृत गंगा संरक्षण अभियान है। इस मिशन के तहत गंगा के प्रदूषण को दूर करने के लिए बजट कई गुना बढ़ाया गया है – केंद्रीय कैबिनेट ने 2019-20 तक नदी की सफाई पर ₹20,000 करोड़ खर्च करने की मंजूरी दी थी। इसका उद्देश्य गंगा जल की गुणवत्ता सुधारना और नदी पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करना है।
गंगा डॉल्फिन योजना: हाल ही में बिहार सरकार ने ‘गंगा डॉल्फिन योजना’ की घोषणा की है। इस योजना से गंगा स्वच्छता अभियानों को और बल मिलेगा, जैसा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बताया। इसका मकसद स्थानीय समुदायों में जागरूकता बढ़ाकर डॉल्फिन संरक्षण में सहयोग जुटाना है।

नेशनल डॉल्फिन रिसर्च सेंटर (NDRC): मार्च 2024 में पटना विश्वविद्यालय के परिसर में भारत का पहला राष्ट्रीय डॉल्फिन रिसर्च सेंटर स्थापित हुआ था। इसका उद्देश्य गंगा रिवर डॉल्फिन का वैज्ञानिक अध्ययन, व्यवहारिकी और संरक्षण को सुविधाजनक बनाना है। हालांकि, अभी तक इस केंद्र में उपकरणों की कमी और विशेषज्ञों की आवश्यकता के कारण यह पूरी तरह सक्रिय नहीं हो पाया है। इसके बावजूद NDRC एक महत्वपूर्ण पहल है, जो भविष्य में शोध और प्रशिक्षण के लिए आधार बनेगा।
प्रोजेक्ट डॉल्फिन: 15 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ की शुरूआत की थी। इसके तहत गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों में गंगा रिवर डॉल्फिन की गणना, आवास संरक्षण और स्थानीय सहयोग को प्राथमिकता मिली है। इस परियोजना के अंतर्गत 2021-23 में 8,000 किमी से अधिक दूरी की 28 नदियों का व्यापक सर्वेक्षण हुआ। इससे डॉल्फिन की वास्तविक आबादी और प्रवासी मार्गों का पता चला, जो संरक्षण रणनीति के लिए अहम है।
अन्य पहलें: चंबल नदी में विशेष डॉल्फिन अभयारण्य (Dolphin Sanctuary) की घोषणा की गई है, जहां डॉल्फिनों की रक्षा के लिए विशेष प्रयास होंगे। वार्षिक गंगा रिवर डॉल्फिन दिवस (5 अक्टूबर) मनाया जाता है ताकि जागरूकता बढ़े। साथ ही गंगा संरक्षण कार्ययोजना (Conservation Action Plan) और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में डॉल्फिन को अनुसूची-I में शामिल करने जैसे कदम उठाए गए हैं।
इन प्रयासों से धीरे-धीरे सकारात्मक संकेत भी मिलने लगे हैं। नमामि गंगे की सफाई व बहाली के उपायों से कुछ नदियों में ऑक्सीजन स्तर बढ़ा है और डॉल्फिन लौटने लगी हैं। विशेषज्ञ आशा कर रहे हैं कि सतत् संरक्षण और सामुदायिक भागीदारी से डॉल्फिन आबादी में पुनर्स्थापना संभव हो सकेगी।

वैज्ञानिक प्रयास
वैज्ञानिक दुनिया में गंगा डॉल्फिन संरक्षण के लिए कई तकनीकी एवं सर्वेक्षणीय पहलें की जा रही हैं:
विस्तृत सर्वेक्षण : ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ के तहत भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII), NMCG व अन्य विभागों ने गंगा बेसिन के 28 प्रमुख नदियों में नाव सर्वे किया। इस सर्वे में आठ राज्यों में कुल 8,000 किमी से अधिक का क्षेत्र कवर किया गया। इन सर्वे में प्रशिक्षित पर्यवेक्षक नाव पर बैठकर डॉल्फिन की उपस्थिति दर्ज करते हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में आबादी का अनुमान लगाया जाता है।
सोनार (इकोलोकेशन) तकनीक : गंगा डॉल्फिन अपने प्रति विषेश अल्ट्रासोनिक क्लिक की सहायता से नेविगेट करती है। जापान और IIT दिल्ली की एक संयुक्त टीम ने विशेष सोनार मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया है, जो इन अल्ट्रासोनिक साउंड सिग्नल को पकड़कर गंगा रिवर डॉल्फिन की उपस्थिति और व्यवहार को ट्रैक करता है। इस प्रणाली की मदद से वैज्ञानिक बिना दृश्य दृष्टि के भी डॉल्फिन का पता लगा सकते हैं और नदी की मध्यम-घुलित धूलभरी जल में भी इनकी आवाजाही का अध्ययन कर सकते हैं। भविष्य में नदी के महत्वपूर्ण हिस्सों में स्थायी सोनार स्टेशन लगाने की योजना है, जिससे हरेक क्षेत्र में ‘डॉल्फिन रिपोर्ट’ तैयार की जा सकेगी।
टैगिंग : दिसंबर 2024 में WII के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मपुत्र नदी (आसाम) में एक नर गंगा रिवर डॉल्फिन को सैटेलाइट टैग किया। टैगिंग के माध्यम से उस डॉल्फिन की स्थानांतरण प्रवृत्ति, गहराई उपयोग और प्रवासी मार्गों की जानकारी मिली। यह भारत में पहली बार किसी जलीय स्तनपायी की सैटेलाइट ट्रैकिंग थी, जिसने डॉल्फिन अनुसंधान को नई दिशा दी। टैगged डेटा से पता चला कि डॉल्फिन किन किन स्थानों पर अधिक समय बिताती हैं, जिससे संरक्षण योजना को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
अन्य वैज्ञानिक पहलें: गणना के लिए उन्नत तरीके (जैसे डबल-पर्यवेक्षक सर्वे), आनुवंशिक अध्ययन और प्रजनन दर का विश्लेषण भी किए जा रहे हैं। कई एनजीओ और स्थानीय विश्वविद्यालय भी गंगा पारिस्थितिकी पर शोध कर रहे हैं। सामुदायिक वैज्ञानिक (Citizen Science) प्रोग्राम्स से मछुआरों को प्रशिक्षित किया गया है ताकि वे भी अलर्ट हों और आकस्मिक भेटों की जानकारी साझा करें।
इन वैज्ञानिक प्रयासों से डॉल्फिन की संख्या और प्रवृत्तियों पर लगातार डाटा इकट्ठा हो रहा है। “मानव गतिविधियों के अनुपात में गंगा रिवर डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि नदी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेत है,” विशेषज्ञों का मानना है। इन प्रयासों को और बढ़ावा देने के लिए सरकारी-गैरसरकारी साझेदारी आजकल चरम पर है।

kahani nights की आवाज़ में नदी की पुकार : गंगा रिवर डॉल्फिन
गंगा की गहराइयों में एक पुरानी कहानी लिखी जा रही है – उसकी आत्मा की कहानी। गंगा रिवर डॉल्फिन इसी नदी की साँस है, उसकी आत्मा की प्रतिध्वनि। जब भी ये ख़ुश होती है, नदी में जीवन का तरंग फैलता है; जब सूसों की संख्या घटती है, गंगा अपनी आवाज़ खो देती है। सोचिए, उस दिन को जब गंगा फिर से निर्मल होगी, उसकी धारा में डॉल्फिनों की चंचलता लौट आएगी – बिल्कुल वैसी ही जैसे माँ का श्रृंगार सजा हो।
जागो! क्योंकि गंगा हमारी नहीं, हम गंगा की संतान हैं। गंगा की मिट्टी में हमारी पहचान है, इसके जल में हमारे कल की दस्तक है। गंगा रिवर डॉल्फिन के बहते छींकते प्राण हमारे स्वच्छ जल और स्वस्थ पारिस्थितिकी का संदेश हैं। यदि हम उन्हें बचाने की ठान लें, तो शायद गंगा की आत्मा फिर मुस्कुरा उठे। आइए, गंगा की पुकार पर ध्यान दें – इस धरोहर को खोने न दें, वरना कल की धरती सूनी रह जाएगी।
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