मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट : कर्नाटक के विजयपुरा जिले के मंगोली गाँव में कैनरा बैंक शाखा से हुई ₹55 करोड़ की सोने की चोरी की यह सच्ची कहानी है – अंदरूनी साज़िश, चुपचाप की गई प्लानिंग और अंत में मैनेजर की गिरफ्तारी। पढ़िए एक सच्चे ‘हाइस्ट थ्रिलर’ जैसी यह घटना, कहानी के रूप में।
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट : एक गर्म रात, एक शांत गाँव, और एक खामोश वारदात
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :-मई की चिपचिपी रात थी। मंगोली, कर्नाटक का एक शांत और सीधा-सादा गाँव। बिजली की आँख-मिचौली के बीच लोग जैसे-तैसे सोने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन किसी को अंदेशा नहीं था कि गाँव की एक इमारत — कैनरा बैंक की शाखा — उस रात किसी और ही कहानी की साजिश का केंद्र बनने वाली है।
सुबह हुई। हर रोज़ की तरह बैंक की सहायक पूजा देवी सबसे पहले पहुँची। लेकिन इस बार कुछ अलग था। शटर थोड़ी सी खुली हुई थी। ताले कटे हुए थे। अंदर घुसते ही उसका दिल बैठ गया। लॉकर खुला पड़ा था। और वो खाली था।
58 किलो सोना… गायब।
पहला सुराग: कोई जबरदस्ती नहीं
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- पुलिस आई, CSI टीम आई, बैंक अधिकारी भी पहुँचे। लेकिन एक बात सबको चौंका गई कोई तोड़फोड़ नहीं थी, कोई अलार्म नहीं बजा, CCTV में किसी बाहरी की मौजूदगी नहीं दिखी। सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे लॉकर खुद ही खुल गया हो।
यहाँ से शक की सूई घूमने लगी – किसके पास लॉकर की चाबी थी?
उत्तर आया: “सिर्फ शाखा प्रबंधक के पास।”
कहानी की परतें खुलती हैं: मैनेजर की दोहरी ज़िंदगी : मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट
शाखा प्रबंधक — शांत, भरोसेमंद, गांव के हर बुज़ुर्ग के चहेते। लेकिन जब पुलिस ने उनसे सवाल किए, तो जवाबों में झिझक थी। मोबाइल की लोकेशन बैंक के पास दिखा रही थी, जबकि वो कह रहे थे वो घर पर थे।
CCTV फुटेज में कुछ खास नहीं था, लेकिन लॉकर लॉग में कुछ गड़बड़ थी। पता चला लॉकर को एक नकली चाबी से खोला गया था। किसी ने उसे बड़ी सफाई से डुप्लीकेट किया था। कोई सेंधमारी नहीं हुई थी। सबकुछ बेहद पेशेवर था।
और तभी पुलिस को मिला एक स्थानीय कारपेंटर, जिसने माना कि शाखा प्रबंधक ने उससे “डुप्लीकेट चाबी” बनवाई थी, बिना कोई कारण बताए।
पर्दा उठता है: “प्लान था महीनों पुराना”
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट : जांच में एक-एक करके परतें खुलीं:
शाखा प्रबंधक ने पिछले 3 महीनों से लॉकर की हर गतिविधि पर नज़र रखी थी।
उसने बैंक कर्मचारियों की छुट्टियों का डेटा चेक किया, और वही रात चुनी जब सुरक्षा सबसे कम थी।
डुप्लीकेट चाबी बनवाई, अलार्म का वायर चुपचाप काटा और पूरी चोरी को अंदर से अंजाम दिया।
सोना लेकर वह सीधे शहर गया और एक निजी लैब में जाकर उसे गोल्ड बार में पिघलवाया।
गोल्ड बार अलग-अलग स्थानों पर छिपा दिए गए ताकि पकड़ में न आएं।
यह सिर्फ चोरी नहीं थी, यह एक सुनियोजित ‘इंटर्नल हाइस्ट’ था – जिसे एक्सेल शीट, नक्शों और टाइमिंग के बारीक विश्लेषण से अंजाम दिया गया था।
मुख्य आरोपी ने चोरी को अंजाम देने से पहले जानबूझकर उस समय का इंतज़ार किया जब बैंक मैनेजर विजय का तबादला हो चुका था — ताकि संदेह का दायरा नए कर्मचारियों पर केंद्रित रहे।
चोरी की योजना को 23 मई को अमल में लाने की तैयारी थी, लेकिन उसी दिन एक हाई-वोल्टेज आईपीएल मुकाबला — आरसीबी बनाम सनराइजर्स हैदराबाद — था। डर था कि लोग जाग रहे होंगे और हलचल पर नजर रहेगी, इसलिए प्लान टाल दिया गया।
अंततः, चोरी की रात से एक दिन पहले उन्होंने गांव के सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए, और मुख्य सड़कों पर लगे हाई मास्ट लाइट्स की बिजली लाइनें काट दीं, ताकि कोई भी उन तक न पहुँच सके और अंधेरे का फायदा उठाया जा सके।
उन्होंने माल ढोने के लिए एक ट्रक की व्यवस्था की और गांव में आने-जाने के लिए मोटरसाइकिलों का इस्तेमाल किया, ताकि ट्रेसिंग मुश्किल हो।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने पुलिस को गुमराह करने के लिए कई तरह की भ्रम फैलाने वाली चालें चलीं — ताकि किसी भी दिशा में सीधा संदेह न जा सके।
पूरी वारदात को इस तरह अंजाम दिया गया जैसे किसी क्राइम थ्रिलर फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम हो रहा हो — हर कदम प्लान किया गया, हर सुराग मिटाया गया।
चालबाज़ी की हद: मिर्च, तंत्र और भ्रम की रणनीति
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- जांच के दौरान पुलिस को ऐसे सुराग मिले जो दर्शाते हैं कि आरोपी सिर्फ तकनीक और प्लानिंग से नहीं, बल्कि भ्रम औरके हथकंडों से भी लैस थे।
जैसे ही खोजी कुत्तों की टीम ने घटनास्थल की तलाशी शुरू की, उनके सामने मिर्च पाउडर बिखरा हुआ मिला — एक पुरानी लेकिन कारगर चाल, जिससे सूंघने की क्षमता प्रभावित होती है और कुत्ते सही दिशा नहीं पकड़ पाते।
इतना ही नहीं, घटनास्थल पर कुछ तांत्रिक प्रतीक, धागे, नींबू, और राख जैसी चीज़ें भी पाई गईं। ये देखने में ऐसे लगे जैसे काले जादू या टोने-टोटके का इस्तेमाल किया गया हो — साफ तौर पर मकसद था पुलिस को मानसिक रूप से भ्रमित करना, ताकि जांच की दिशा भटक जाए या कुछ देर के लिए रुक जाए।
बैंक मैनेजर ने अन्दर एक गुड़िया भी रख दी थी सिन्दूर और हल्दी लगी हुई
यह दिखाता है कि आरोपियों ने सिर्फ बैंक को ही नहीं, जांच एजेंसियों की मानसिकता को भी अपनी योजना का हिस्सा बनाया था।
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- एक नाम जो सबका भरोसा था
उस व्यक्ति ने चोरी की जिसे गांव वाले “गुरूजी” कहकर पुकारते थे। बच्चों को स्कूल में फीस जमा कराने में मदद करता था, बुज़ुर्गों के पेंशन फॉर्म भरता था। लेकिन उसी व्यक्ति के भीतर कुछ बदल रहा था।
बैंक की नौकरी में प्रमोशन नहीं मिल रहा था, घर में पैसों की किल्लत थी, और जीवन में असंतोष बढ़ता जा रहा था। उसने यह सोच लिया — “एक बार में बड़ा काम करूंगा और गायब हो जाऊंगा।”
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट : गिरफ्तारी और कबूलनामा
पुलिस ने cctv में पाया की चोरी से 2 hr पहले एक इन्नोवा गाड़ी बैंक के बाहर से राउंड लगा के गयी थी और वापिस चोरी के 2 hr बाद वापिस वही कार दिखी जिस से पुलिस को शक हुवा। और जब पुलिस ने उस नंबर की तहकीकात की तोह पता चला की ये नंबर पुराने बैंक मैनेजर विजय कुमार के नाम रजिस्टर हे।
पुलिस की एक पुराणी थ्योरी हे की क्रिमिनल क्राइम करने के बाद उसी जगह वापिस आता हे ये देखने की उस से कोई सबूत तोह नहीं छूट गए या पुलिस की कार्यवाही कर रही हे
27 मई को पुलिस ने शाखा प्रबंधक को हिरासत में लिया।
पूछताछ में उसने मान लिया — “मैंने ही चुराया सोना।” कारण? कर्ज, पारिवारिक दबाव और तेज़ अमीर बनने की चाह। उसके दो सहयोगी और कारपेंटर भी पकड़े गए। सोने का एक बड़ा हिस्सा जब्त कर लिया गया।
उसने पुलिस को बताया कि यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था — यह योजना उसने 2024 के अंत में ही बनानी शुरू कर दी थी। वह रोज़ फाइलों में बैठकर लॉकर के टाइम और व्यवहार को नोट करता था। उसने बैंक की तकनीकी खामियों का पूरा फायदा उठाया।
प्लान की नींव: रिश्ते, पेशे और लालच का गठजोड़
पुलिस जांच से सामने आया कि विजयकुमार मिरियाल ने इस डकैती की रूपरेखा कई महीने पहले ही तैयार कर ली थी। यह कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं था, बल्कि धीरे-धीरे बुनी गई एक रणनीति थी।
इस योजना में उसने दो खास लोगों को शामिल किया:
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :-चंद्रशेखर नेरेला, जो पहले बैंक में कर्मचारी था, लेकिन अब एक ठेकेदार और कैसीनो ऑपरेटर के रूप में काम कर रहा था।
दूसरा था सुनील मोका, विजयकुमार का करीबी और विश्वासपात्र, जो पहले भी उसकी बैंकिंग जिम्मेदारियों में साथ देता था।
तीनों ने मिलकर इस हाइस्ट को अंजाम देने की रूपरेखा तय की — कौन क्या करेगा, कब कौन कहाँ रहेगा, और सबसे अहम, कैसे किसी को भनक तक न लगे।
यह गठबंधन सिर्फ जरूरत का नहीं, बल्कि आपसी समझ और लालच से जुड़ा था — और यहीं से मंगोली की सबसे बड़ी बैंक चोरी की कहानी शुरू हुई।
गाँव में हलचल, भरोसे का संकट :-
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- गाँव के लोग सदमे में थे।
“जिस आदमी को हम इज्ज़त देते थे, उसी ने हमारे जेवर ले लिए?”
120 से अधिक ग्रामीणों ने गोल्ड लोन के लिए गहने जमा किए थे। अब वे बैंक के सामने रोज़ लाइन में खड़े होते हैं, पूछते हैं:
हमारा सोना मिलेगा?
क्या बीमा है?
हमें कोई मुआवज़ा मिलेगा?
बैंक ने बीमा क्लेम शुरू किया है और अस्थायी राहत की योजना भी लागू की है। लेकिन भरोसे की चुभन बाकी है।
बैंकिंग सिस्टम पर सवाल :-
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- जांच में पाया गया:
बैंक में CCTV पुराने मॉडल के थे, जो केवल 7 दिन तक फुटेज रखते थे।
अलार्म सिस्टम मैनुअल था — नेटवर्क से नहीं जुड़ा था।
लॉकर सिस्टम सिंगल चाबी से चलता था — बिना OTP या बायोमेट्रिक के।
अब सभी क्षेत्रीय बैंकों में सुधार की लहर चल पड़ी है:-
AI CCTV
डुअल-ऑथेंटिकेशन लॉकर
मोबाइल आधारित ऑडिट ट्रिगर सिस्टम
अदालत और कानून :-
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :-
FIR, चार्जशीट, IPC की धाराएँ:
IPC 380: चोरी
IPC 409: विश्वासघात द्वारा संपत्ति का गबन
IPC 120B: आपराधिक साजिश
पाठकों के लिए सबक
1. गोल्ड लोन लेते समय बीमा की स्थिति पूछें।
2. लॉकर में जमा गहनों का डाक्यूमेंटेशन रखें।
3. बैंक की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल पूछना आपका हक है।
4. समय-समय पर बैंक से स्टेटमेंट और लॉकर स्टेटस माँगें।
एक गाँव, एक शाखा, एक विश्वासघात :- मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट
मंगोली बैंक गोल्ड हीस्ट :- मंगोली की यह सच्ची कहानी हमें याद दिलाती है कि हर यूनिफॉर्म के पीछे इंसान होता है, और इंसान की लालच जब बाहर आती है, तो सोना भी लोहे की तरह कमजोर बन जाता है।
यह कोई फिल्म नहीं थी। यह एक गाँव की हकीकत थी — जहाँ भरोसा तोड़ा गया, लेकिन सबक भी मिला।
बैंक की दीवारें जितनी मोटी हों, असली सुरक्षा ईमानदारी और जवाबदेही से आती है।
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