ऑपरेशन विजय 1999 की पूरी कहानी – कैसे शुरू हुआ कारगिल युद्ध, क्या थी पाकिस्तान की साजिश, कितने सैनिक शहीद हुए और कैसे भारत ने प्राप्त की ऐतिहासिक जीत।
ऑपरेशन विजय 1999 :जब बर्फीली चोटियों ने लहू की गर्मी महसूस की
1999 की गर्मियों में, भारत के सीने पर एक ऐसा ज़ख्म लगा, जो आज भी दिलों को रुला देता है। कारगिल की बर्फ से ढकी उन ऊँचाइयों पर दुश्मन ने धोखे से कब्ज़ा कर लिया था। पर भारत माता के सपूतों ने ये साबित कर दिया कि चाहे बर्फ हो या आग, तिरंगा कभी झुकने नहीं देंगे।
ऑपरेशन विजय सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी—ये भारत के वीर सैनिकों की त्याग, साहस और बलिदान की वो कथा थी, जिसने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि जब बात राष्ट्र की हो, तो भारतीय जवान मौत से भी टकरा जाते हैं।
ऑपरेशन विजय 1999: कब,क्यों और कैसे हुआ कारगिल युद्ध?
समय: मई 1999
कारगिल युद्ध की शुरुआत मई 1999 में हुई, लेकिन इसकी पटकथा कई महीनों पहले लिखी जा चुकी थी। पाकिस्तान की सेना और उसके नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (NLI) के जवानों ने भारत की सीमा में घुसपैठ की। वे भारी बर्फबारी के दौरान भारत की खाली पड़ी चौकियों में घुस आए थे, जिनसे भारतीय सेना हर साल सर्दियों में अस्थायी रूप से हटती थी।
धोखा: विश्वासघात की मिसाल
भारत और पाकिस्तान के बीच लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसमें दोनों देशों ने शांति और बातचीत का संकल्प लिया था। लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने इस संधि को नजरअंदाज करते हुए एक गुप्त सैन्य योजना को अंजाम दिया—जिसे बाद में कारगिल संघर्ष के नाम से जाना गया।
जंग का मैदान: कारगिल सेक्टर
ऑपरेशन विजय 1999 : पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत के कारगिल, द्रास, बटालिक, टाइगर हिल और तोलोलिंग जैसे ऊँचाई वाले क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इन पहाड़ियों की ऊँचाई 16,000 से 18,000 फीट तक थी और वहां से श्रीनगर-लेह हाईवे (NH-1A) पर सीधा नजर रखी जा सकती थी।
अगर पाकिस्तान सफल हो जाता, तो कश्मीर और लद्दाख का संपर्क टूट जाता।
भारत की प्रतिक्रिया: ऑपरेशन विजय की शुरुआत
जब इस धोखे का पता चला, तब भारतीय सेना ने 26 मई 1999 को ऑपरेशन विजय की शुरुआत की।
सेना, वायुसेना और नागरिकों का अद्भुत सहयोग
भारतीय सेना ने बेहद कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में दुश्मनों को खदेड़ने का बीड़ा उठाया।
भारतीय वायुसेना ने 30 मई को ऑपरेशन सफेद सागर की शुरुआत की, जिसमें मिराज 2000 जैसे फाइटर जेट्स का प्रयोग हुआ।
स्थानीय नागरिकों ने सैनिकों को रसद, जानकारी और समर्थन दिया।
भारतीय सेना ने किन-किन कठिनाइयों का सामना किया?
1. ऊँचाई और दुर्गम स्थल
दुश्मन पहाड़ियों की 16,000 से 18,000 फीट ऊँचाई पर था, जबकि भारतीय सेना को नीचे से चढ़ाई करनी थी।
इतनी ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी होती है – जिससे साँस लेने में दिक्कत, चक्कर आना और थकावट बहुत जल्दी होती है।
बर्फ से ढकी चट्टानों पर रात के समय चढ़ाई करना लगभग आत्महत्या जैसा काम था।
2. भीषण ठंड और मौसम की मार
तापमान अक्सर -10°C से -30°C तक गिर जाता था।
सर्दियों की बर्फबारी में लड़ाई का मतलब था – फ्रॉस्टबाइट, हाइपोथर्मिया, और जवानों के हाथ-पैर सुन्न हो जाना।
बर्फ में छिपे लैंडमाइन्स और दुश्मन के स्नाइपर्स ने भी कई सैनिकों की जान ली।
3. ऊँचाई पर बैठे दुश्मन की बढ़त
पाकिस्तानी सैनिक पहले से ऊँचाई पर बंकर बनाकर बैठे थे – जिससे उन्हें गोलियाँ और मोर्टार फेंकने में बढ़त थी।
नीचे से ऊपर चढ़ते हुए सैनिक खुले लक्ष्य बन जाते थे।
हर चोटी पर जाने का एक ही रास्ता था – और उस पर दुश्मन की पूरी नजर थी।
4. रसद और आपूर्ति की कठिनाई
ऊँचाई वाले इलाकों में खाद्य सामग्री, गोला-बारूद और चिकित्सा सहायता पहुँचाना बेहद मुश्किल था।
कई बार सैनिक भूखे-प्यासे रहते हुए ही लड़ाई में जुटे रहे।
घायल सैनिकों को नीचे लाने के लिए हेलिकॉप्टर भी ऊँचाई के कारण बार-बार विफल हो जाते थे।
5. मनोबल की परीक्षा
लगातार हफ्तों तक नींद न मिलना, दोस्तों की शहादत को आँखों के सामने देखना, और दुश्मन की कायरता देखकर भी संयम बनाए रखना – ये मानसिक युद्ध भी था।
बावजूद इसके, भारतीय सैनिकों ने “करगिल नहीं झुकने दूँगा” जैसे जज़्बे के साथ लड़ाई जारी रखी।
6. गुप्तचरी और खुफिया सूचना की कमी
युद्ध की शुरुआत में भारत को ये जानकारी नहीं थी कि दुश्मन कहाँ तक घुस चुका है।
पाकिस्तान ने नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (NLI) की वर्दी पहना कर इसे आतंकियों की घुसपैठ बताने की कोशिश की।
इससे भारत को शुरुआती रणनीति बनाने में विलंब हुआ।
7. वायुसेना की सीमाएँ
युद्ध ऊँचाई पर था और दुश्मन भारतीय एयरस्पेस के क़रीब नहीं आया, इसलिए वायुसेना के पास लक्ष्य तय करना मुश्किल था।
भारत ने सीमा पार हमला नहीं किया ताकि युद्ध का दायरा न बढ़े, जिससे ऑपरेशन और कठिन हो गया।
8. शहीदों की शव निकासी
ऊँचाई, गोलाबारी और मौसम के कारण शहीद सैनिकों के शव नीचे लाना भारी जोखिम से भरा था।
कई बार शवों को बर्फ में कई दिन तक रखना पड़ा, जब तक स्थिति सुरक्षित नहीं हुई।
सैनिकों के मन की बात: एक जवान की जुबानी
“ऊपर बर्फ थी, सामने दुश्मन था, पीछे खाई थी, और पेट में भूख… लेकिन हमें सिर्फ तिरंगा दिख रहा था।”
युद्ध की भयानक लड़ाइयाँ: वीरता की मिसालें
ऑपरेशन विजय 1999 :
1. तोलोलिंग की लड़ाई (Tololing Battle)
तारीख: जून 1999
सैनिक: 18 ग्रेनेडियर्स, 2 राजपूताना राइफल्स
वीर योद्धा: कैप्टन विक्रम बत्रा (PVC)
तोलोलिंग की ऊँचाई पर बैठे दुश्मनों को नीचे से चढ़कर मारना एक असंभव सा काम था। लेकिन हमारे जाँबाज़ सैनिकों ने रात में चढ़ाई कर दुश्मन को पीछे धकेला।
2. टाइगर हिल का शौर्य
तारीख: जुलाई 1999
सैनिक: 8 सिख रेजीमेंट, Ghatak Platoon
वीर योद्धा: सूबेदार संजय कुमार, कैप्टन अनिल शर्मा
टाइगर हिल पर दुश्मन के भारी हथियार लगे थे। पर भारतीय सैनिकों ने रात में बर्फीले तूफान के बीच दुश्मन की पीठ पर हमला किया। यह युद्ध का टर्निंग पॉइंट था।
3. पॉइंट 4875 (बत्रा टॉप)
वीरता: कैप्टन विक्रम बत्रा ने “ये दिल मांगे मोर!” कहते हुए दुश्मनों के कई बंकर नष्ट किए। वो वीरगति को प्राप्त हुए लेकिन उनकी वीरता अमर हो गई।
बलिदान: कितने फौजी शहीद हुए?
“अगर तुम चाहते हो कि तुम्हें याद रखा जाए, तो कोई ऐसा काम करो जिसके लिए तुम मिट भी सको।”
ऑपरेशन विजय 1999 : इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 1363 घायल हुए। इनमें से कुछ नाम आज भी लोगों की जुबान पर हैं:
कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन अनुज नैयर
राइफलमैन संजय कुमार
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
कैप्टन हनुमंथप्पा
सूबेदार कुशल ठाकुर
सम्मान और गौरव: परमवीर और महावीर चक्र
परमवीर चक्र विजेता (4)
1. कैप्टन विक्रम बत्रा (मरणोपरांत)
2. राइफलमैन संजय कुमार
3. ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
4. लांस नायक दीपेंद्र सिंह सोढ़ी (मरणोपरांत)
महावीर चक्र विजेता (11)
(इनमें से 5 मरणोपरांत)
युद्ध का अंत: विजय का सूरज
26 जुलाई 1999 को भारत ने आधिकारिक रूप से कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की और “ऑपरेशन विजय” सफल हुआ। इस दिन को “कारगिल विजय दिवस” के रूप में हर साल मनाया जाता है।
पाकिस्तानी सेना को वापस भेज दिया गया और भारत ने एक बार फिर साबित किया कि वह न केवल सहनशील है, बल्कि युद्ध में भी अजेय है।
एक सपूत का पत्र माँ के नाम: भावनात्मक झरोखा
“माँ, अगर मैं लौटूं तो तिरंगा लहराकर लौटूंगा, और अगर न लौटूं… तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊँगा। लेकिन मैं लौटूँगा जरूर…”
– कैप्टन विक्रम बत्रा
मुख्य तारीखें:
3 मई 1999: भारतीय चरवाहों ने पहली बार पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल क्षेत्र में देखा।
5-10 मई 1999: भारतीय सेना ने पुष्टि की कि पाकिस्तानी सैनिकों ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार कर घुसपैठ की है।
26 मई 1999: भारतीय सेना ने आधिकारिक रूप से ऑपरेशन विजय शुरू किया।
30 मई 1999: भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया।
4 जुलाई 1999: टाइगर हिल पर भारत का कब्जा हुआ, युद्ध का टर्निंग पॉइंट।
14 जुलाई 1999: पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को पीछे हटाने की घोषणा की।
26 जुलाई 1999: भारत ने कारगिल की सभी चोटियों पर नियंत्रण पा लिया और युद्ध समाप्त हुआ।
कठिनाइयाँ जो बत्रा ने झेली
1. अत्यधिक ऊँचाई (≈16,000 फीट)
ऑक्सीजन की कमी: साँसें छलकने लगती थीं, चक्कर आते थे।
ठंड: तापमान –20°C से नीचे उतर जाता था, जिससे फ्रॉस्टबाइट का ख़तरा रहता था।
2. डरावनी चढ़ाई
बर्फीली चट्टानों पर रात में अँधेरे में सरपट चढ़ना।
गिरकर चोंट लगने या नीचे खाई में जा गिरने का डर।
3. दुश्मन की नज़रों से बचकर स्वीकारना
पाकिस्तानी बंकर और स्नाइपर्स पहाड़ की ऊपर की ओर नज़र बनाए थे।
नीचे से ऊपर आते हुए हर कदम पर गोलियों और मोर्टारों का सामना करना पड़ा।
4. रसद की कमी
खाना-दवा और गोला-बारूद हेलिकॉप्टर से ज़्यादा ऊँचाई तक नहीं पहुंच पाती थी।
कई बार जवान भूखे-प्यासे ही लड़ाई में तैनात रहे।
5. मनोबल की परीक्षा
साथियों की शहादत आँखों के सामने; लगातार हफ्तों तक नींद और परिवार से दूरी की पीड़ा।
2. “ये दिल माँगे मोर” – सफलता का सिग्नल
मिशन: पॉइंट 5140 का सफल कब्ज़ा
D-Day: 20 जून 1999 की रात
H-Hour (हमले की शुरुआत): 20 जून 1999, 00:30 बजे
घटनाक्रम:
बाद वाले अर्टिलरी कवरेज के नीचे बत्रा की ‘डी कंपनी’ ने बर्फीले चढ़ाई के बाद सुबह 04:35 बजे दुश्मन के बंकरों को फ़तह किया।
उसी समय कैप्टन बत्रा ने रेडियो पर तर्ज़ीब से कहा:
“यै दिल माँगे मोर!”
ये शब्द उन्होंने अपनी कंपनी की जीत का इशारा करने के लिए चुने थे ।
इस P-5140 की जीत ने आगे के अभियानों में जोश भर दिया और इसी सफलता ने “कारगिल विजय” की रफ्तार बढ़ाई।
युद्ध के बाद का प्रभाव
ऑपरेशन विजय 1999: राजनीतिक और सैन्य परिवर्तन:
भारत ने अपनी सीमाओं की निगरानी और सुरक्षा रणनीतियों को अत्यधिक मजबूत किया।
उच्च तकनीकी सर्विलांस और इंटेलिजेंस को प्राथमिकता दी गई।
LOC पर सैनिकों की तैनाती सर्दियों में भी सुनिश्चित की गई।
जनता की भावनाएँ:
पूरे देश ने सैनिकों के सम्मान में मोमबत्तियां जलाईं।
स्कूल, कॉलेज और गाँव-गाँव में शहीदों की तस्वीरों पर फूल चढ़ाए गए।
“जय हिंद”, “भारत माता की जय” के नारे हर गली में गूंजे।
क्यों कभी नहीं भूल सकते ऑपरेशन विजय
ऑपरेशन विजय 1999 : सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन नहीं था, ये हमारे जज्बे, शौर्य और आत्मबल का उदाहरण है। यह हमें हर बार याद दिलाता है कि स्वतंत्रता मुफ्त में नहीं मिलती—इसके पीछे शहीदों का बलिदान होता है।
जब-जब तिरंगा लहराएगा, कारगिल के वीरों का नाम गूंजेगा। उनके बलिदान को याद करना सिर्फ एक कर्तव्य नहीं, बल्कि हमारा धर्म है।
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